________________
(११२) वे सर्व कागके पीछ हो गये । कहा है कि “ बुद्धिः कर्मानुसारिणी
उतावल कीजे नही कीधे काज विणास । मोर सोनानो कागडो करी हुओ घरदास ॥१॥
फिर वह खुदही खुदकी निंदा करता हुआ झंपापात करनेके लिये पर्वतके ऊपर चढा, वहां एक साधुको देखा, तब मनमें विचार करने लगा कि मैं इनको धनप्राप्तिका उपाय पूर्छ । ऐसा चितन करके उनको वंदना की, तब 'ऋषिने कहा कि तूने देवका आराधन किया, वहां मोरका काग हुआ। जिसे अब तू यहां झंपाणत करनेको आया है । यह श्रवण कर आश्चर्य पा कर विचार किया कि देखो इस ऋषिका कैसा ज्ञान है ! फिर साधुको कहने लगा कि महाराज ! मुझे धनप्राप्तिका उपाय बतलाइये । ज्ञानीने कहा कि तूने पूर्वभवमें किसी नियमका पालन नहीं किया है, विनय नहीं किया है और किसीको दान भी नहीं दिया है, जिसके योगसे तू दरिद्रि हुआ है । एसी बात सुनते हुए जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, जिससे पूर्वके भव देखे । तब वैराग्य पा कर दीक्षा ली। फिर अच्छी तरह संयमाराधन करके देवलोकमें देवता हुआ "
अब चोत्तीसवीं पृच्छाका उत्तर एक गाथाके द्वारा कहते है
जो पुण दाइ विणयजुओ चारित्तगुणसयाइन्नो। __ सो जणसयविरकाओ महडिओ होइ लोगंमि ॥४९॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com