Book Title: Gautam Pruccha
Author(s): Lakshmichandra Jain Library
Publisher: Lakshmichandra Jain Library

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Page 106
________________ ( १०१ ) गमें जा कर अनेक प्रकारकी कोमल वनस्पतिको काट डाली । उसको वनपालकने देखा, तब खूब पीट कर उसको राजाके पास ले गया और वनपालकने विज्ञप्ति को कि महाराज ! इसने तुम्हारी वाडीका विनाश किया है । राजाने उसके दोनों हाथ कटवा डाले, जिससे महा दुःखी हुआ । पुनः उसने बहुतही पश्चात्ताप किया, कहा है : माय बाप मोटा तणी शीख न माने जेह । कर्मवशे पडिया थकां पछी पस्ताये तेह ॥१॥ फिर वह गोसल आत्मनिंदा करता हुआ मृत्यु पा कर उसी नगर में पद्मसेठके वहां गोरा नामक पुत्र हुआ । वह जन्मसेही रोगी व गलतकुष्टी हुआ। उसके नख और नाक बैठे हुए, भ्रकुटीके केश सडे हुए और दांत गिरे हुए थे, निरन्तर मक्खियां गनगनाट करती हुई शरीरके ऊपर बैठीही रहती थी । दुर्गंध तो इतनी निकलती थीं कि किसीसे सहन नहीं हो सकती । पिताने अनेक औषध किये पर वह सर्व व्यर्थ गये । कष्ट नष्ट न हुआ और रोगकी शान्ति न हुई । एकदा दमसार नामक ज्ञानी मुनि उस नगरके वनमें पधारे । उनको वंदना करनेके लिये बंगरवासी जनको : जाते हुए देख कर पद्मसेठ भी उसके साथ गया । वहां साधु मुनिराजने धर्मदेशनामें कहा कि-जीव अपने किये हुए कर्मके वशीभूत हो कर दुःखी होता है । यह श्रवण कर पद्मसेठने पूछा कि हे भगवन् ! मेरे पुत्रने कौनसे पाप किये हैं ? गुरुने उसको पूर्वी गोविंदका सर्व वृत्तान्त' सुना कर कहा कि वह गोर्सले मर कर तेरा पुत्र हुआ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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