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लोभके वशीभूत हो कर अबोल प्राणियोंके ऊपर उनकी शक्तिसे अधिक भार भरता था और बहुत किराया ले कर निर्वाह करता था ।
एकदिन कोई मुनिराज गौचरीके निमित्त उसके घरको आये । उनको स्त्री भरतार दोनोंने मिल कर भावसे दान दिया । जिसके योगसे शुभकर्म उपार्जन करके वह उसी नगरीमें धनावह सेठके यहां धनदत्त नामक पुत्र हुआ । वह वणिजकला जानता था परन्तु पूर्वभवमें जीवोंके ऊपर अत्यंत भार भरता था, जिसके योगसे कूबडा हुआ ।
उसी नगरीमें धनसेठ रहता था, वह मर कर उसके वहां पुत्री रूपमें उत्पन्न हुआ । उसका धनश्री नाम रखा । वह कन्या बहुत रूपवंत और गुणवंत थी । यौवनवयको प्राप्त होने पर पूर्वभव के स्नेहसे वह धनदत्त कूबडाके साथ शादी करना चाहती थी । पुनः उसी धन्ना सेठको एक दूसरी पुत्री हुइ थी, परन्तु कर्मके योगसे वह कुबडी थी । एकदा उसके पिता के समक्ष किसी निमित्तियाने कहा कि जो मनुष्य तेरी पुत्री धनश्री के साथ शादी करेगा वह बडा व्यवहारी होगा । ऐसी बात सुन कर धनपाल नामक किसी सेठने धनश्रीकी याचना की । धनश्रीके पिताने उस बातको मान्य किया तथा दूसरी जो कूबडी लडकी थी वह धनदत्तको देनेका । निश्चय किया । और दोनों कन्याओंकी शादीका मुहूर्त्त एकही लग्नमें लिया ।
अब धनश्रीने पूर्वभव के स्नेहवशात् धनदत्त कूबडेके साथ विवाह करनेकी वांछासे मनोरथपूरक नामक
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