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दिया । जब वह तरुण हुआ, तब बत्तीस कन्या के साथ उसकी शादी की । गोभद्र सेठ दीक्षा ले कर देवता हुआ । पुत्रके ऊपर अत्यंत स्नेह था, जिससे गौभद्र सेठ बत्तीस त्रियोंके व शालिभद्र के लिये नित्यप्रति नये नये वखाभरण भेजते रहते थे ।
एकदा नेपाल देशका एक व्यापारी लक्ष मूल्य के सोलह रत्नकम्बल बेचनेको लाये, उन्हें श्रेणिक राजाने नहीं लीं । परन्तु भद्रा सेठाणीने सोलह वस्त्र ले कर उन्हें फाड़ कर बत्तीस टूकडे किये । और बत्तीस बहूओंको एकेक टूकडा बांट दिया । शामको सर्व पुत्रवधूओंने पग लूछ कर फेंक दिये ।
अब श्रेणिक राजाकी पट्टराणी चेलणाने एक रत्नकम्बल लेनेके लिये बहुत आग्रह किया । श्रेणिकने व्यापारीको बुलाया । वह बोला कि भद्रा सेठाणीको विक्रय से दे दी । राजाने एक रत्नकम्बल लेनेके लिये भद्रा सेठानीके पास आदमी भेजा । उसको भद्राने कहा किये तो मेरी पुत्रवधुओंने पग लूंछ कर फेंक दी हैं । मैले टुकड़े पड़े हुए हैं, चाहिये तो ले लो । यह बात सुनकर आश्चर्य पा कर श्रेणिक राजा शालिभद्रको देखनेके लिये उसके घर आया । तब भद्रा सेठानी सातवें मजले पर बैठे हुए शालिभद्रको कहने लगी कि - हे वत्स ! अपने यहां श्रेणिक आया है इस वास्ते तुम नीचे चलो ।
पुत्र समझा कि श्रेणिक नामका कोइ करियाणा होगा, इसलिये माताको कहा कि तुमही ले जा कर वखारमें डलवा दो, जब लाभ मिले तत्र बेच डालना | माताने
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