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मुनि आकाश मार्ग में चलते भये । दीर्घकाल पर्यंत श्रावकधर्म पाल कर फिर दोनों भाइओंने दीक्षा ली । और समाधि मरणसे मर कर देवलोक में देवता हुए। कहा है:
जीवदया जिनवर कही, जे पाले नर नार । पुत्र होवे शूरा सबल, तेहने रंग मझार ॥
अब सत्ताइसवें और अठ्ठाइसवें प्रश्न के उत्तर देढ गाथाके द्वारा कहते हैं ।
असूयं जो भणइ सुयं सो बहिरो होड़ परजम्मे ||४२|| अहिं चिय दिट्ठे जो किर भासिज्जा कह विमूढप्पा | सो जच्चंधी जायइ, गोयम नियकम्मदोसेण ॥ ४३ ॥
अर्थात् — जो पुरुष अश्रुतं यानि अनसुनेको सुना कहे, अर्थात् जो बात कहिंसे सुनी भी न हो तथापि ऐसा कहे कि यह बात मैंने सुनी है, इसके अतिरिक्त जो दूसरेके दोषको प्रकट करे वह जीव निश्चय बधिर होता है ( ४२ )
तथा, जो पुरुष अनदेखी वस्तुको देखी कहे, इस प्रकार जो मूढात्मा पुरुष धर्मकी उपेक्षा करता हुआ भाषण करे, बह जीव हे गौतम ! मर कर अपने कर्मके दोषसे भवान्तरमें जात्यंध होता है (४३) जिस प्रकार महेन्द्रपुरका रहनेवाला गुणदेव सेठका पुत्र वीरम था वह पूर्वकृत पापके उदयसे जन्मपर्यंत बधिर जात्यंध त्रींद्रिय सदृश हुआ, अर्थात् कान और नेत्र रहित मानो द्रिय जैसा हुआ। यहां पर वीरमकी कथा कहते हैं:
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