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द्विकर जोड वंदना - नमस्कार करके पृच्छा की कि हे भगवन् ! मेरा पुत्र दुर्गंध हुआ उसका कारण क्या ? उसने पूर्वभवमें कैसे २ कर्म किये होंगे ? तव भगवान. कहने लगे कि, नागपुर से बारह योजनकी दूरी पर नीळ पर्वत में एक शिला के ऊपर मासोपवासी साधु धर्मध्यान करते थे । वहां उस साधुके प्रभाव से आहेडीको शिकार नहीं मिलता था, जिससे आहेडीने साधुके ऊपर रोष करके उसको उपद्रव करनेका निश्चय किया। जब मास
मण पूर्ण हुआ तब साधु गांव में एषणार्थ पधारे । पीछेसे व्याधने आकर उस शिलाके नीचे काष्ट डालकर अग्नि जलाया | साधु भी गोचरी करके फिर उस शिला पर आकर बैठे। उसको नीचे से ताप परिताप देने लगा । साधुने शुभ ध्यानारूढ होकर समभावपूर्वक उष्ण परिसह सहन किया और केवलज्ञान पा कर वे मोक्षमें गये । इधर वह व्याध दुष्ट कर्मसे कुष्ट रोगी हुआ । मरकर सातर्वी नरक में गया । फिर सर्प होकर पांचवीं तरकमें गया । पुनः सिंह हो कर चौथी नरक में गया। बाद में चित्रक हो कर तीसरी नरक में गया | फिर मार्जार हो कर दूसरी नरकमें गया । तत्पश्चात् उलूक हो कर प्रथम नरक में गया। इस प्रकार भवभ्रमण करता हुआ एकदा दरिद्री गोवाल हुआ । पशुपालनका व्यवसाय करता हुआ नाघोरी श्रावकके पाससे नवकार मंत्र सीखा | एकदा वनमें वह सो गया था उस समय दावाग्नि जलता हुआ उसके ऊपर आ गिरा । जिससे वह मर गया । मरते समय नवकार मंत्रका स्मरण किया जिसके प्रभाव से तेरा पुत्र हुआ । उसका दुर्गधी शरीर कर्मके दोषसे हुआ है । इस प्रकार पूर्वभव
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