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. ( ९७ ) विमलकीर्ति राजाके वहां अर्ककीर्ति नामक राजा चक्रवर्तिपणे उत्पन्न हुआ । वहां राज्य पालकर व जितशत्रु साधुके पास दीक्षा लेकर यहांतू अशोक नामक राजा हुआ है । तेरी राणी और तू-दोनोंने मिल कर पूर्वभवमें एकमन हो कर यही रोहिणी तप किया था, अतः तेरा स्नेह उसके ऊपर बहुत है । पुनः राजाने पूछा कि हे स्वामिन्! मेरी स्त्रीको आठ पुत्र और चार पुत्रीएं हुई वे उसके कौनसे पुण्योदयसे हुई ? तब गुरु बोले कि-हे महाभाग्य ! उनमेंसे सात पुत्र तो पूर्वभवमें मथूरानगरीने एक अग्निशर्मा ब्राह्मण भिक्षुक रहता था, उसके वहां पुत्र रूपसे उत्पन्न हुए थे। वे दरिद्रीकुलमें उत्पन्न हुए, जिससे सातों पुत्र भिक्षा मांगनेको जातेथे, परन्तु उनको कोई अपने स्थान पर बैठने नहीं देता, जहां जाते वहां बाहर निकाल देते । इस प्रकार वे पुत्र गांवगांवमें भ्रमण करते व भीख मांगते हुए एकदा पाटलीपुरमें गये। वहां उन्होंने एक वाडीमें राजा एवं प्रधानके पुत्रको अनेक अमूल्य आभरण पहन कर खेलते हुए देखे, जिससे मनमें आश्चर्य पाये । तब बड़े भाइने कहा कि, देखो विधाताने कैसा अंतर किया है ? ये लड़के वांछित सुख भोगते हैं और हमने भिक्षा मांगते हुए घर'घरमें भटकते हैं। यह सुन कर छोटा भाई बोला कि, यह उपालम अपने किसको देवें ? उन्होंने पूर्वभवमें पुण्य किये हैं, जिसके फल वे भोगते हैं, और अपने पुण्यहीन हैं जिससे घर घर भीख मांगते फिरते हैं। वहांसे घूमते २ वनमें गये। वहां एक साधु मुनिराज काउसग्ग ध्यानमें स्थित थे । उनके पास जा कर खडे रहे । साधुने भी काउसग्ग
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