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(८३) त्रिको अचानक बालक बीमार हो गया और जिस प्रकार पवनसे दीपक वुझ जावे उसी प्रकार देखने २ बालक देवशरण हो गया । वह देख कर देदा सेट व देमती सेठानी मूर्छित हो कर भूमि पर गिर गये। थोडी देर के बाद सचेत हुए और बहुत रुदन तथा आनंद करने लगे; मगर गया हुआ पुत्र वापिस आया नहीं।
फिर बड़े भाइ देशलने कहा कि तुम स्नान भोजन कर लो। मेरे लडके हैं वे तुम्हारेही है ऐसा समझो; अतः अब तुम शोक करना छोड़ दो । उस समय उनके समीप होकर चार ज्ञानके धारक चारणऋषि चले जाते थे, वे उनके रुदन श्रवण कर वहां आये । उनको सर्व लोगोंने उठ कर वंदना की । ऋषिने धर्मलाभ दिया । पुनः धर्मोपदेश दे कर कहने लगे कि-हे सेठ ! तुम शोक मत करो, क्योंकि जिस जीवने जैसा कर्म उपार्जन किया होता है वैसाही फल उसको मिलता है । यदि कोदरा नामक धान्य बोया होवे तो उसकी उपजमें शाल कहांसे मिले ? नींव का बीज बोवे और रायणकी आशा करे तो वह कहांसे मिले ?
___ सेठने पूछा कि-महाराज ! मेरे दोनों पुत्रोंने पूर्व भवमें किस २ प्रकारके कर्म किये हैं ? जिनके योगसे एकको अनेक सन्तान हुए हैं और दूसरेको लन्तान है ही नहीं। तब मुनि कहने लगे कि-हे सेठ ! इसी नगरीमें इस भवसे पिछले तीसरे भव में विल्हण और निल्हण नामके दो कुलपुत्र रहते थे, उनमें बडा भाइ तो बडा धर्मात्मा और दयावंत था, और छोटा भाइ तो नित्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com