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(७५) तुम्हारे हाथसे गइ और हमारे घर में आइ, उसका कारण क्या ?
तब ऋषि कहने लगे कि-पूर्वकालमें श्रीपुरनगरमें जिनदत्त सेठ रहता था, उसकी एक पद्माकर और दूसरा गुणाकर नामक दो पुत्र थे । उम सेठने मरने के समय निधानका स्थान दिखलाया कि-अमुक स्थानमें द्रव्य रखा हुआ है । फिर बड़े भाइने रात्रिमें गुपचूप जा कर निधान मेंसे सर्व द्रव्य निकाल लिया । पीछेसे छोटे भाइको कहा कि, चलो निधान निकाल कर अपने दोनों भाइ बांट लेवें । फिर दोनों भाइयोंने जमीन खोद कर देखा तो कुछ भी नहीं मिला । तब बडे भाइके कपट योगसे छोटे भाइको मूच्र्छा आ गइ । सचेत होने के बाद फिर बडे भाइने छोटे भाइको कहा कि-यह सब धन निकाल कर तूही ले गया है । ऐसा कह कर गाढ कर्म बांधे। इस प्रकार मैंने वंचना की, जिससे मर कर मैं सुधन हुआ। और छोटा भाइ मर कर तेरा मदन नामक पुत्र हुआ । मैंने वंचना की जिससे मेरी लक्ष्मी मदनके घर आइ तथा मैंने पूर्व भवमें दान दे कर फिर पश्चात्ताप किया था. जिससे मेरी लक्ष्मी च ही गइ और मदनके जीवने बहुत सुपात्रों को दान दिये, दिलाये, जिससे उसको पुष्कल धन मिला।
यह बात सुन कर सेठको वैराग्य उत्पन्न हुआ और दीक्षा ली, तब सर्व लक्ष्मीका स्वामी मदन हुआ। श्रावकधर्म का पालन कर अंत में वह देवलोक में देवता हुआ;
और सुधनऋषि मोक्ष में गये" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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