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पूछा कि क्यों रोती है ? तब उसने कहा कि मेरा भाई नित्य एक एक स्त्रीका परित्याग करता है और दीक्षा लेनेवाला है । उसको धन्नाने मुस्करा कर कहा कि तेरा भाई ऐसा कायर क्यों हो गया ? तीनही खियाँको एकही साथ क्यों छोड़ नहीं देता है ? तब वो बोली कि - बात करना तो सहठ है: परन्तु करना अति दुर्लभ है, आप एक को भी छोड़ नहीं सकते हैं । धन्नाने कहा कि में तेरे मुखसे यही बचन निकलवाना चाहता था । अब कुछ सत कहना । जा. मैंने मेरी आठों स्त्रियोंका अभीसे त्याग कर दिया है । यह सुन कर स्त्री पगमें पडी और मनाने लगी कि महाराज ! मैंने तो हंसते २ कहा था अतः आपको रोष न करना चाहिये । इत्यादि कह कर बहुत समझाया, मगर धन्नाने कहा कि मेरे मुखमेंसे जो बात निकल गई, सो निकल गई. अब वह पलटेगी नहीं । ऐसा कह कर वहांसे उठा उठ कर अपने साला पास गया । उसे समझा कर साथ लिया और धन्ना तथा शालिभद्र इन दोनोंने मिल कर श्रीमहावीरके पास जा कर दीक्षा ली। दीक्षा महोत्सव श्रेणिक राजाने कराया । दोनों साधु छठ, अठम, दशम, दुबालस, मासखमणादि तप करते हुए शरीर में अत्यंत दुर्बल हुए । एकदा श्रीमहावीर के साथ विहार करते हुए राजगृही नगरी में आये । पारणेके लिये भगवानने कहा कि आज तुम्हारी माताके हाथसे पारणा होगा । जिससे भद्रा के घर गये मगर शरीर दुर्बल हो जानेसे किसीने पिछाने नहीं । वापिस लौटते हुए पिछले भवकी माता मिली । ऋषिको देखतेही वह हर्षित हुइ और उसके स्तनमेंसे
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