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(१५)
डाला । अमात्यगणने यह वृत्तांत जान कर अनन्तवीर्यके पुत्र कृतवीर्यको हस्तिनापुरके तख्तपर बेठाया । उसने एक दिन अपनी माताके मुखसे उपर्युक्त वृत्तान्त सुना, तब वह अपने पिताका वैर लेने के लिये आश्रममें गया और जमदग्नि ऋषिको मार डाला । यह हाल जान कर परशुराम हस्तिनापुरमें आया और कृतवीर्यको मार कर खुद राज्यासन पर बैठ गया । उस समय कृतवीर्यको तारा नामक राणी, जो कि सगी थी, परशुरामके भयसे वनमें भाग गइ । उस पर किसी तापसने अनुकम्पा ला कर अपने आश्रमकी गुफामें छुपा रखी। वहां उसने चौदह स्वप्न करके सूचित पुत्रको जन्म दिया, जिसका नाम सुमूम रक्खा गया ।
अब परशुरामने क्षत्रियों पर क्रोध करके पुनः पुनः सात दफे पृथ्वी को निःक्षत्री ( क्षत्रिय रहित ) किया। जहां कहीं क्षत्रिय देखने में आते, वहां परशुरामकी परशु (कुठार) जाज्वल्यमान हो उठती थी। किसी समय जिस स्थानमें तारा राणी गुप्तरीत्या बैठी हुइ थी, उस आश्रममें आते हुए परशुरामका कुठार जाज्वल्यमान हुआ। इस समय परशुरामने तापसोंसे यह पूछा कि-'यहांकोइ क्षत्रिय है क्या ?'। तापस बोले कि-'पुर्व गहस्थावासमें हम ही सब क्षत्रिय थे' परशुरामने उन्हे ऋषि जानकर छोड दिये । इस प्रकार परशुरामने सर्व क्षत्रियोंका संहार किया और उनकी दाढाओंसे एक थाल भरा। किसी समय परशुरामने किसि निमित्तियासे गुप्तरीत्या यह प्रश्न किया कि 'मेरी मृत्यु किस प्रकार होगी?'
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