________________
खड्ग रखकर ऊपरसे ढांप दिया और खुद गायोंके समूहमें छिप रहा । बादमें यज्ञदत्तने गुप्त रीतिसे खड्ग निकाल कर शिवकुमारकी शय्या के ऊपर प्रहार किया, उस समय शिवकुमारने गौओंके समूहमेंसे गुपचुप निकल करके यज्ञदत्त पर खड्गप्रहार करके उसको मार डाला । और मुखसे चोर ! चोर !! ऐसी चिल्लाहट करते हुए गोवाल व शिवकुमार थोडी दूर तक बाहर गये; फिर वापिस आ कर बूम पाडने लगे कि-यज्ञदत्तको चोरने मार डाला । यह काम करके शिवकुमार घर आया। उसकी माताने पूछा कि-' यज्ञदत्त कहां है ? ' तब शिवकुमारने कहा कि ' पीछे आ रहा है।' यह कह कर मनमें विचार करता है कि-मेरी माताके कर्म तो देखो, कैसे निन्दनीय हैं ? जो पुत्रको भी मारनेके लिये तत्पर हुई ! ऐसा विचार कर माताको कहने लगा कि मैं रात्रिको सोया नहीं हुं, जिससे मुझे निद्रा आती है । ऐसा कह कर वह सो जाता है। उस समय उसकी माताने खड्गके ऊपर चींटियां चढती हुई देखीं, तब खड्ग निकाल कर देखा तो रुधिरसे लिप्त था । इस परसे वह विचारने लगी कि-यज्ञदत्तको निश्चय इसीने मार डाला है । ऐसा चिंतन करके अति दुःखित हुई । और उसी खड्गके द्वारा अपने पुत्रको मार डाला। वह धावमाताने देखा, उसने मुशलसे धारिणी को मार डाला। मरते मरते धारिणीने चपेटाके द्वारा धावमाताके मर्मस्थानमें प्रहार किये, जिससे वह भी मर गई । इस प्रकार निर्दयता पूर्वक परस्पर द्रोह करके वे मर गये
और वे सर्व जीव उस भवमें भी पाप के करनेसे अल्पाShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com