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याचना की । इधर पूजा करके वह निकलने लगी, तब इसने इस नवयुवकको सोता हुआ देखा । विषा, इस युवक के रूप- लावण्यपर मुग्धा हुई । इसने, बडी हुशीयारीसे इसके पास अपने पिताकी मुद्रिकासे मुद्रित पत्रको खोलकर देखा, तो इसके आश्चर्यकी सीमा न रही । पत्र मे लिखा था: - ' इस पत्र के लानेवालेको निःशंक मनसे विष दे देना । इस कार्यमें मेरी संपूर्ण आज्ञा है ।' पहिले तो इस कन्याको, इस पत्रके पढ़नेसे बड़ा दुःख हुआ, परन्तु विचार कर उसने सोचा कि ऐसे रूप लावण्ययुक्त युवकको विष ( झहर ) देनेके लिये मेरे पिता कभी नहीं लिख सकते । वस्तुतः उनके लिखनेका आशय यह है कि विषाको (मेरेको ) दे देना, क्योंकि उन्होंने मेरेही योग्य यह वर देखा है । विषाने तुरंत ही इस कल्पनाकी सिद्धिके लिये एक सलीपर अपने नेत्रसे काजल लेकर 'विष' का ' विषा' बना लिया । और बड़ी सावधानी के साथ वह पत्र ज्यों का त्यों कपडे में बांध दिया । और अपने घर चली गई ।
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कुछ समयके अनन्तर दामनक जाग्रत हुआ, और शहेरमें जाकर सेठके पुत्र समुद्रदत्तको वह पत्र दे दिया । समुद्रदत्तने पत्रको पढकर विचार कीया कि पिताजीने लिखा है कि- इस आनेवाले आदमीको विषा देदेना । इसमें जरा भी संदेह नहीं करना । ' इसलिये मुझको चाहिये कि मेरी बहिन - विषाका लग्न इस युवकके साथ कर दूँ ।
बस, विचार पक्का कर लिया । और बड़े उत्सवके -साथ विषाका लग्न दामनकके साथ कर दिया । विवाहके
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