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दूसरा जो अचल नामक वणिक था, वह तपस्वी, ज्ञानी तथा धर्मवन्त पुरुषोंकी निंदा करता व कहता था कि-' यह साधु क्या जानते हैं ? ' इस प्रकार सर्वकी अवज्ञा करता था । जिस पापके कारण वह दूसरी नरक में गया ।
अब विमलका जीव देवलोकसे चव कर तेरा सुबुद्धि नामक पुत्र हुआ है और अचलका जीव नरकमेंसे निकल कर पूर्व भवमें किये हुए निंदाके पापसे यहां पर तेरा दुर्बुद्धि नामक पुत्र हुआ है । वह अब भी संसारमें बहुत रुलेगा । इत्यादि पूर्वभवकी बातें सुनकर सुवुद्धिने श्रावकधर्म अंगीकार किया। और कुछ दिनके बाद दीक्षा भी ली । सिद्धांत पढ कर और चारित्र पाल कर पांचवें ब्रह्म देवलोकमें उत्पन्न हुआ । अनुक्रमसे मोक्षमें भी जायगा । कहा है:
भणे भणावे ज्ञान जे, पावे निर्मल बुद्धि । देव गुरु भक्ति करे, अनुक्रमे पावे सिद्धि ॥१॥ और भी कहा हैःजिणपवरसुरतेअं वीरं नमिऊं विसालरायतयं । लहिओ बालाबोहो भणंति निसुणंति सुक्खकरो ॥१॥
अब सोलहवें और सत्रहवें प्रश्नके उत्तर दो गाथाओंके द्वारा कहते हैं:जो पुण गुरुजणसेवी धम्माधम्माइ जाणिउं कुणइ । सुयदेवगुरुभत्तो मरि सो पंडिओ होइ ॥ ३२ ॥
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