________________
(५८)
मारेइ खाइ पीयइ किंवा पढिएण किंच धम्मेण । एअं चिय चिततो मरि सो काहलो होइ ॥ ३३ ॥
अर्थात् — जो पुरुष गुरुजन यानि वडिलोंकी सेवा भक्ति करने में तत्पर होता है, धर्माधर्म अर्थात् पुण्यपापका स्वरूप जाननेकी वांछा करता है, तथा जो श्रुत सिद्धांतका और देवगुरुका भक्त होता है, वह कुशल पुरुष मर कर पंडित होता है ( ३२ ) जो पुरुष जी - वोंको मारे, हिंसा करे, मद्य-मांसादिक खावे पीवे, मौज मझाह करे और इस प्रकार चिंतन करे कि -' धर्म करनेकी क्या जरूरत है ? पढने पढानेसे क्या फायदा है ? वह जीव मर कर काहल - मूक- मूर्ख होता है ( ३३ ) जिस प्रकार पूर्वभवमें आंबाका जीव मर कर कुशल हुआ और आंबाका मित्र जो लींबा था, कुशलके वहां कुमार' नामक सेवक हुआ । उसकी कथा कहते हैं:
वह मर कर
-:
66
धारावास नगर में वेसमण सेठ रहता था, उसको कुशल नामक पुत्र हुआ । वह पढ कर ७२ कलाओं में प्रवीण हुआ । और पदानुसारिणी प्रज्ञावंत हुआ । अब उस सेठके वहां एक कर्मकर था, जो कि कुरूप, दुर्भागी, मूक व मुखरोगी था । तथापि कुशल उस कर्मकरके ऊपर स्नेह रखता था । कुशल जैनधर्मका जानकार था और धर्म क्रियाओं को भी करता था ।
एक दिन कुशल कोड़ा करनेके लिये वनमें गया | वहां एक विद्याधरको ऊंचा उछल कर पीछा नीचे पड़ता
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com