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(५३) मनमें चिंतवे, तथा अन्य पुरुषोंको ज्ञान पढावे, उनको धर्मोपदेश देवे और जो पुरुष सिद्धांतकी तथा सद्गुरुकी भक्ति करे वह पुरुष मर कर मेधावी अर्थात् बुद्धिशाली, चतुर, शाना और विचक्षण होता है । जिस प्रकार मतिसागरका पुत्र सुवुद्धि प्रधान बुद्धिमान् हुआ (३०) तथा जो तपस्वी ज्ञानवन्त गुणवन्त पुरुष हो, उसकी जो पुरुष अवगणना करे, मुखसे ऐसा बोले कि-' कुछ नहीं, इसमें माल क्या है ? यह कुछ भी नहीं जानता है, मूर्ख है ' वह पुरुष अधन्य अर्थात् अभाग्यवान् , दुष्टपापिष्ट और दुर्बुद्धिवाला होता है, जैसे सुबुद्धि प्रधानका छोटा भाई कुवुद्धि के कारण दुःखित हुआ था (३१)
इन दो प्रश्नोंके ऊपर सुबुद्धि कुबुद्धिकी कथा कही जाती है।
“क्षितिप्रतिष्ठित नगरमें चंद्रयशा राजा राज्य करता था । उसको मतिसागर नामक प्रधान था, जिसके पुत्रका नाम सुबुद्धि था । वह छोटीवयमें पढ कर प्रज्ञाके बलसे सर्व कलाओंमें निपुण हुआ । चार प्रकारकी बुद्धिका निधान हुआ । प्रधानको फिर दूसरा पुत्र हुआ, वह भी पढने योग्य हुआ । तब इसे पढने के लिये पाठशालामें भेजा गया। पंडितने इसको पढाने के लिये चार मास पर्यंत बहुत उद्यम किया, परन्तु जिस प्रकार कर्षणी लोग उखर भूमिमें बीज बोवें और वह निष्फल जावे, उसी प्रकार पण्डितका सर्व उद्यम निष्फल हुआ, क्योंकि वह गुणवन्त व बुद्धिशाली
था। जिससे लोगोंने उसका नाम दुर्बुद्धि रख दिया।
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