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(५२) करने लगा। तब देवने क्रोधातुर होकर चपेटा मारा, जिससे मृत्यु पा कर पहली नर्कमें गया । और बडा गुणधर नामक वणिक मर कर देवता हुआ । अब वह नरकसे निकल कर भोजदेव ( तुम्हारा पुत्र) हुआ है। वह पूर्वकृत कर्मके योगसे दुर्भागी है । और पहले देवलोकसे चवकर तेरे वहीं राजदेव नामक पुत्र हुआ है, वह सुकृतके योगसे सुभागी हुआ है । ' इस प्रकार गुरुकी वाणीको श्रवण करते हुए दोनों भाइयोंको जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, जिससे पूर्व के अब देखने लगे, तब भोजदेवने आत्मनिंदा करके कुछ कर्मका क्षय किया, और दो भाई तथा पिता तीलाने मिलकर केवली भगवानके पाल श्रावकधर्म अंगीकार किया । अनुक्रमसे दोनों पुत्र दीक्षा ले कर और चारित्रधर्म पालकर आयुपूर्ण होनेपर देवलोकमें गये । और तीसरे भबमें मोक्षमें जायेंगे । कहा है:
गुण बाले निंदे नहीं, ते सोभागी हुँत ।
अवगुण बोले परतणा, दोहग ते पामंत ॥ १ ॥ अब चौदहवें और पंद्रहवें प्रश्नके उत्तर कहते है:जो पढइ चिंतइ सुणे अनं पाढेइ देइ उवएसं । सुयगुरुभत्तिजुत्तो मरि सो होइ मेहावी ॥ ३० ॥ तवनाणगुणसमिद्धी अवमन्नइ किर न याणइ एसो। स मरिऊण अहन्नो दुम्मेहो जायइ पुरिसो ॥ ३१॥
अर्थात्:-जो पुरुष ज्ञान सीखे, सुने, सूत्रोंके अर्थ
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