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(५४) उस असेंमें उसी गांवका रहने वाला एक व्यवहारिक सेठ, कि जिसका नाम धन्ना था, उसने अपने चार पुत्रोंकी शादी की । उन चार पुत्रोंके नामः-१ जावड २ बाहड, ३ भावड और ४ सावड थे। उन चारोंकी शादी होने के पश्चात् धन्ना सेठ बीमार हो गया। तब उसने अपने चारों पुत्रोंको बुला कर शिक्षा दी कि 'हे पुत्रो ! तुम चारों भाइ परस्पर स्नेह रख कर साथमें रहना; परन्तु अपनी स्त्रियोंके वचन सुन सुनकर अलग मत हो जाना । किसीने सत्य कहा है किः--
स्त्रीने वचने जाये स्नेह, स्त्रीने वचने जाये देह । स्त्रीने वचने बांधब लडे, एकठा रहे तो गुअड चडे ॥१॥
ऐली बात तुम लोग मत करना । कदापि कलह करके एक दुमरेसे अलग मत होना । अलग रहनेसे लोकमे हांसी होगी । तिस पर भी यदि अलग हो कर रहने की जरूरत पटे, तो तुम चारों के लिये अलग अलग चार निधान अपने घर के चारों कोने मे चारोंके नामसे रख छोडे हैं, वह ले लेना।' ऐसी बात पिताके मुखसे श्रवण कर दुत्र बोले कि-' हे तात : आपकी आज्ञाके अनुसार ही हम वर्तन करेंगे।'
तदनन्तर पिताका समाधिमरण हुआ। उसका मतकार्य करके चारों भाई स्नेह पर्वक इकट्ठे रहने लगे । अनुक्रमसे चारों भाइओं को सन्तानकी प्राप्ति हुई । तब स्त्रियों में लडाई झगडे होने लगे और वे सब कहने लगीं कि-'अब अलग रहो ।' उस समय चारों भाइयोंने मिल
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