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रख लिया । उधर चांडालने लडकेकी कनिष्ट अंगुली सागरपोत को दिखलाई । सागरपोत समझा कि-लडका मर गया और मुनिका वचन मिथ्या हुआ ।
कुछ वर्षों के बाद सागरपोत अपने गोकुलमें गया, तब उसने अंगुली कटे हुए दामनकको युवावस्थामें देखा। दामनकको देखते ही उसके हृदयमें आघात पहुँचा । उसने गोकूलरक्षक नंदको पूछा कि-' यह लडका तेरे पास कहाँसे ? तुझे यह कहाँसे मिला ? ' नंदने कहा:' महाराज किसी चंडालने इसकी अंगुली काट ली, इस लिये यह भयभ्रान्त होकर यहां चला आया, और मेरे पास वर्षोंसे रहता है। मैंने इसकी पुत्ररूप रक्षा की है ।' यह सुनतेही सागरपोत अपने घरकी और चलनेके लिये प्रस्तुत हुआ। तब नंदने आश्चर्यान्वित होकर कहाः-'वाह ! आप अभी न अभी आए वैसे ही कैसे चले जाते है ? क्या कोई गृहकार्य आपको विस्मृत हुआ है ? । यदि ऐसा है तो आप एकपत्र लिख दीजिये, मेरा यह पुत्र शीघ्र आपका कार्य कर आवेगा । ' सेठको यह बात रुचिकर हुइ । उसने एक पत्र लिखकर दामनकको दिया, और कहा कि-यह पत्र शीघ्र ही जाकर मेरे पुत्रको दे दे । वह बहुत जल्दी राजगृही के समीप पहुँचा। और थोडी देर विश्राम लेनेके कारण एक उद्यानस्थ कामदेवके मंदिरमें जा बैठा । थोड़ी ही देरमें उसको वहाँ निद्रा आ गई, क्योंकी-चलनेके परिश्रमसे वह बडा थका हुआ था। इसी समय सागरपोतकी पुत्री, जिसका नाम 'विषा' था, इसी मंदिरमें कामदेवकी पूजा करनेको आइ । कामदेवकी पूजा करते हुए इसने अपने योग्य वरकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com