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( ३२ ) हस्तिनापुर नगरमें सुनंद राजा राज्य करता था। उस गांवमें गौओंको बैठने के लिये लोगोंने एक मंडप बनाया था । निरंतर वे गौएं जंगलमेंसे तणादिक चर कर और पानी पी कर शामके समय मंडपमें आ कर सुखसे बैठती थी। उस गांवमें भीम नामक एक पुरुष रहता था। उसकी उत्पला नामकी स्त्री थी। उसके पुत्रका नाम गोत्रास था। वह छोटी वयसेही महा दुष्ट था; निर्दयी, पापी और जीवघातका करनेवाला था। किसी दिन रात्रिके समय लोग मो गये, इससे बाद वह गोत्रास अपने हाथमें काती ले कर गौओंके मंडपमें आया। वहां कइ गायोंके पूछ, कान, नाक, ओष्ठ, जिल्हा और पैर वगेरह अवयव काट डाले । ऐमा पाप करके वह पांचसो वर्षकी आयु पूरी कर दूसरी नरकमें नारकीपणे उत्पन्न हुआ। क्योंकि कहा है:
घोड़े बल समारीया, कीना जीव विनाश। पुण्य विहुणा जीव सो, पावे नरक निवास ॥ १ ॥
गोत्रासका जीव नरककी घोर वेदनाएं भोग कर वहांसे निकल कर इसी नगरमें सुभद्र सेठकी सुमित्रा नामा स्वीके वहां पुत्र रूपसे उत्पन्न हुआ है। उसके जन्मके होते ही उसे एक कचरेके पूंजे में फेंक दिया। फिर वहांसे उठा लाये और उज्झित ऐसा नाम दिया। जब वह बडा हुआ, तब सुभद्र सेठ धनोपार्जनके लिये उसको साथ ले कर वहाणमें चढा । कर्मवशात् , संवर्तक वायुके योगसे प्रवहण नष्ट हुआ। जिससे सुभद्र सेठ मर कर के देव हुआ। उस वृत्तान्तको सुन कर उज्झित पुत्र घरको आया। पिताके
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