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होना यह उत्तम स्त्रीकी रीति है । और दूसरी ओर विचार करूं तो सत्यवचनका लोप होता है कि जो कार्य इस भव और परभवमें महा दुःखदायी होगा । इस प्रकार विचार कर अंत में यह निश्चय किया कि जो हा सो हो; मगर सत्य बोलना । अमृत पीने से मृत्यु न होगी यह सोच कर सत्य बात राजाके समक्ष कह दी । उस वचनसे राजा बहुत हर्षित हुआ, और नाग सेठसे थापण दिलवा कर उसे छोड दिया तथा उसकी स्त्रीको उत्तम वस्त्रोंका शिरपाव दे कर बेटी की । अनंतर नगरकी स्त्रियों में नागिला सत्यवक्ता के रूपसे प्रसिद्ध हुई । एकदिन नाग सेठ के घर पर महीनेके उपवासके पारणे कोई मुनि पधारे । उनको भाव सहित निर्दोष अन्न-पानी दिया । जिससे दोनोंने शुभ कर्म उपार्जन किया । आयु पूर्ण होते नागिलाका जीव मृत्यु पा कर -तु यहां पद्म सेठके रूपसे आ कर उत्पन्न हुआ और नाग सेठ मृत्यु पा कर कपटके यांगसे यहां तेरी पद्मिनी स्त्री हुई है । जीभसे असत्य बोला जिसके कारण मुख रोग व काहल स्वर हुआ है । इस प्रकार पूर्वभवका वृत्तांत सुन कर योग्य पा कर दोनों मोक्षमें गये । कहा है:
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जीभे सच्चा बोलिए राग द्वेष कर दूर | उत्तमसे संगत करो लाभे ज्यों सुख पूर ॥
अब सातवीं पृच्छाका उत्तर एक गाथाके द्वारा कहते हैं:
आसं वस पसुं वा जो निलंछियं इह करेइ | सो सवंगनीणो नपुंसओ होइ मरिऊणं ॥ २३ ॥
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