________________
अर्थात्-जो पुरुष घोडे और वृषभ यानि बेल तथा बकरे प्रमुख पशुओंको आंक करे, नाक छेदे, गलकंबल काटे, श्रोत्र काटे, वह जीव सर्व मनुष्योंमें अधम जानना और वह मर कर नपुंसक होता है (२३) जैसे गोत्रासने अनेक जीवोंके अवयव छेदे, जिससे अनेक भव पर्यंत नपुंसकत्व पाया, उस गोत्रासकी कथा कहते हैं।
“वणिक ग्राममें मित्रदेव राजा राज्य करता था। उसको श्रीदेवी नामक पट्टराणी थी । किसी समय वहां वर्द्धमान स्वामी समोसरे । बारह परिषद मिली। धर्मदेशना श्रवण कर सर्व हर्षित हुए। वहां श्रीमहावीरके प्रथम शिष्य और सात हाथ प्रमाण शरीरवाले अक्षीणमहाणसी प्रमुख अनेक लब्धि के धारक श्रीगौतमस्वामी छठ तपके पारणे श्रीमहावीरकी आज्ञा पाकर पात्रादिककी प्रतिलेखना करके वणिकग्राममें गोचरी करनेको पधारे । गौचरी करके वापिस लौटते हुए रास्तेमें अनेक नगरजनोंसे घिरे हुए और गाढ बंधनोंसे बंधे हुए एक पुरुषको देखा । जिसके कान, नाक, होठ, जीभ फटे हुए थे, जिसका शरीर धूलसे लिपटा हुआ था और तिल तिल जितना मांस उसके शरीरमेंसे काट कर उसे खीलाते हैं। ऐसा दयापात्र और दुःखी देखकर यह पापका फल है, ऐसा जान कर मनमें वैराग्य ला कर श्रीमहावीरके पास आये और इरियावही पडक्कम कर भात पानी आलोइ पूछने लगे कि-हे भगवन् ! किस किस प्रकारके रौद्र कर्मक करनेसे यह पुरुष ऐसा महा दुःखी हुआ है ? तब भगवान बोले कि-हे गौतम! सुन, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com