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( २३ ) इस प्रकार नरक व स्वर्गकी प्राप्ति विषयके दो प्रश्नोत्तर कहे । अब तिर्यंचत्व व मनुष्यत्व पाने के विषयम किये हुए दो प्रश्नों के उत्तर दो गाथाओंके द्वारा कहते हैं:कजत्थं जो सेवइ मित्ते कज्ज कएवि संचयइ । कूरो गूढमइओ तिरिओ सो होइ मरिऊणं ॥ १९ ॥ अज्जवमदवजुत्तो अकोहणा दोसजिओ दाई । नयसाहुगुणेमु ठिी मरिउ सो माणुसो होइ ॥ २० ॥
अर्थात्-स्वार्थ के वशीभूत हो कर मित्रकी सेवा करनेवाला, कार्य सिद्धि होनेके पश्चात् मित्रको छोड देनवाला, उसकी निंदा करनेवाला, क्रूर परिणामी और गूढमतिवाला, अपने मनकी बात कीसीको कहे नहीं, ऐसा जीव मर कर तिर्यच होता है । जिस प्रकार अशोक कुमारने माया करके मित्रद्रोह किया । जिससे विमलवाहन कुलगरका हाथी हुआ ॥ १९ ॥
आर्जव अर्थात् सरल चित्तवाला होवे, मार्दव यानि मानरहित निरंहकारी होवे, अक्रोधी (क्षमावन्त ) होवे, दोषवर्जित अर्थात् जीवघातादि दोष रहित होवे, सुपात्रको दान देवे, न्यायवाला होवे और महात्मा-साधुके गुणोंकी प्रशंसा किया करे, वह जीव मृत्यु पाकर मनुष्य होता है । जैसे सागरचंद्र मर कर पहला कुलगर विमलवाहन हुआ।
अब इन दो प्रश्नों के ऊपर सागरचंद्र सेठ और अशोकदत्तकी कथा कहते हैं:--- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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