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(२६) आयुष्य पूर्ण होने पर काल कर जंबूद्वीपके भरतक्षेत्रमें दक्षिणखंडमें गंगा और सिन्धु नदीके बीच में तीसरे आरेमें पल्योपमका आठवाँ भाग अवशेष रहते हुए नवसो धनुष्य प्रमाण शरीरवाले युगल हुए। जहां कल्पवृक्षके द्वारा मनोवांछित पदार्थ मिलते हैं । अल्प कषायवाले हुए । परस्पर दोनोंमें गाढ प्रीति हुई और अशोकदत्त मित्र भी मर कर वहीं चार दांत वाला हाथी हुआ । उस हाथीने भ्रमण करते हुए एक दिन दोनों युगलोंको देखे, उस समय पूर्वकालीन स्नेहके वशसे दोनोंको सँडसे उठा कर अपनी पीठ पर चढ़ा दिये । अतः उस युगलका विमलवाहन नाम प्रसिद्ध हुआ । आर्जव गुणके प्रतापसे सात कुलगरमें यह प्रथम कुलगर हुआ। और अशोकदत्त कपटके करनेसे तिर्यंच हुआ । "
यह मनुष्यत्व तथा तिर्यंचत्व पानेके विषयमें सागरचंद्र तथा अशोकदत्तकी कथा कही ।
अब स्त्री मृत्यु पा कर पुरुषत्व पावे और पुरुष मत्यु पा कर स्त्रीत्व पावे, इन दो प्रश्नोंके उत्तर दो गाथाओंके द्वारा देते हैं:
संतुट्टा सुविणीआ अज्जवजुत्ता य जा थिरा निचं । सच्च जपइ महिला सा पुरिसो होइ मारऊण ॥ २१ ॥
जो चवलो सठभावो मायाकवडेहिं वंचए सयणं । न कस्स य विसत्थो सो पुरिसो महिलिया होइ ॥२२॥
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