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(२०) भो नियम किया । शरत्काल सम्बन्धी गायका घृत छोड़ कर शेष घृतका भी पञ्चक्खाण किया । बथुआ, मंडुकी
और पालककी तरकारी छोड़कर दूसरी तरकारीके नियम किये । बड़े व पूर्णादिक छोड़कर शेष धान्यशाक के नियम किये । आकाशका पानी छोड़कर शेष पानीके नियम किये । इलायची, लोंग, कस्तूरी, कंकोल, कपूर, जायफल-इन पांच वस्तुओंसे संस्कारित तंबोल छोड़कर शेष तंबोल खानेके पच्चक्खाण किये । पहलेसेही घरमें जो कुछ चीजें थीं उनसे अधिक परिग्रह रखनेका नियम किया । यह पांचवें व सातवें व्रत सम्बन्धी बात कही । उसी अनुसार दूसरे भी सर्व व्रतोंके यथायोग्य . नियम ले कर श्रीमहावीर प्रभुको वंदन कर घरको आये। शिवानंदा स्त्रीने भी श्रीमहावीरके समीप जा कर आनंदकी तरह श्रावक धर्म अंगीकार किया। दोनोंने चौदह वर्ष पर्यंत इस प्रकार श्रावकधर्मका पालन किया । यदि कोई देवता भी मनमें द्वेष करके चलायमान करनेको आवे तो भी चलायमान न होनेका दृढ निश्चय किया।
तत्पश्चात् आनंद श्रावकको प्रतिमा आराधनेका मनोरथ हुआ। उस समय समस्त कुटुम्बी मनुष्योंकी आज्ञा लेकर कोलाग ग्राममें पौषधशाला बनवाइ । बडे पुत्रको घरका भार देकर व सर्व सजनको जिमा कर सर्व वृत्तान्त कह सुनाया, और पौषधशालामें जा कर महातप करते हुए ग्यारह (११) प्रतिमाका आराधन करने में प्रवृत्त हुए । कहा है:Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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