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जिसको पुत्र नहीं है, उसकी गति ( सद्गति ) नहीं होती, वह स्वर्गमें नहीं जा सकता। आप भी अपुत्र हैं, जिससे आपकी भी सद्गति कहां है ? इस बातको ऋषिने सत्य मानलिया और विचार करने लगा किकिसी खीके साथ पाणिग्रहण करके पुत्र उत्पन्न करूं । यह सोच कर तपका त्याग कर दिया और उसने कौष्टिक नगर में जितशत्रु राजा, जिसके वहाँ अनेक पुत्रियां थीं उस के पास जानेका विचार किया । ऋषि मनको इस प्रकार चलायमान देख, जो मिथ्यात्वी देव था, उसको खेद हुआ । और उसने तुर्त्तही श्रावकधर्म अंगीकार किया ।
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उधर तापस, राजाके पास कन्याकी याचना करने को गया । तापसको देख राजा आसन से उठ खडा हुआ ! और कुछ सामने भी आया । जब ऋषिने कन्याकी याचना की, तब राजाने उसको कहा कि-' मेरी सौ पुत्रिओं में से जो आपकी वांछा करे, उसको आप अंगीकार करें | यह श्रवण कर ऋषि भी अंतेउर में गया । वहां जाते ही सभी राजकन्याएं उसे जटाधारी, दुर्बल, भीख मंगा, श्वेतकेशवाला, व असंस्कारी शरीरवाला देख कर उस पर थूकने लगीं । ऋषिको बड़ा क्रोध हुआ । उस क्रोध के मारे अपने तपके प्रभावसे उन सब कन्याओंको कुबड़ी व कुरूपिणी बना दीं और पीछे लौटा। उस समय घरके चौक में धूल में खेलती हुई एक राजकन्या को उसने देखा । उसके सामने हाथ में बीजोरा फल रख कर कहने लगा-' हे रेणुका ! तु मुझको चाहती है ? उस समय उस लडैकीने बीजोराकी तरफ अपना
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