Book Title: Dravya Gun Paryayno Ras Dravyanuyog Paramarsh Part 07
Author(s): Yashovijay
Publisher: Shreyaskar Andheri Gujarati Jain Sangh

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Page 20
________________ ............ .. २४५२ •विषयमाहा. વિષય વિષય પૃષ્ઠ कुशलानुबन्धिप्रज्ञादृढीकरणम् ................ २४३७ | यथाप्रयोजनम् एकनयप्राधान्यम् आदरणीयम् ..... २४४९ स्थिराष्टिनो भई .................... २४३७ | प्रत्यायोग्य सा५नो गुरावैमय निजामे ..... २४४९ निजपरमात्मतत्त्वधारणाप्रवणं चित्तम् ............. २४३८ भेदविज्ञानाद्यभ्यासप्रभावः ........२४५० आन्ताष्टिनी अन्तिने मोगलीये................२४३८ प्रभाष्टिमा प्रवेश ......... २४५० कान्तायां निरर्थकपापव्यापारनिवृत्तिः ............... २४३९ | प्रज्ञाप्रतिष्ठाप्रभावप्रद्योतनम् .......................... २४५१ सोसंशाने - दोपासनाने छो............... २४३९ | मा५५॥ उपयोमाथी २॥२॥हने छूटा 418 ..... २४५१ शिविरतिधभरत्नयोग्य वाससंपन्न ........ २४३९ | पांय 45२नी प्रशाने प्रावी................ २४५१ कान्तायां तात्त्विकप्रणिधानप्रवृत्तिप्रारम्भः ........... २४४० | सर्वविरतिपरिणतिप्राप्तिः ............................२४५२ तविs विरतिपरिणामयी गु गुआनुवांधी थाय . २४४० | प्रभाष्टिमा भात्मध्यान स्थिर बने ........... वयनानुसान-वयनक्षमा वगैरेनो पाम ......... २४४० भनाश प्रयत्नसाध्य छे.. ........ २४५२ भावापना यासंबंधी ७ लक्षu .............. २४४० सुतीर्थे शास्त्रार्थश्रवणम् ... .................. .२४५३ भावश्रावकलक्षणपरामर्शः ............................. २४४१ | નિગ્રંથ દશાને નિહાળીએ.. ............... २४५३ मावश्रा१४ मासंधी सत्तर सक्षu............ २४४१ निर्ग्रन्थलिङ्ग-चेष्टा-गुणपरामर्शः ... ..... २४५४ अनुदानमा २५ शुद्धिमाने 10वी ............ २४४१ | मापसाधुन सात लिंगने अपनावी............ २४५४ क्रमशो भोगशक्तिप्रक्षया ...............................२४४२ साधुन पाय सुं८२ येष्टाने स्वी रीमे ............ २४५४ संशाशैथिल्यना दी ६२७।योनी विशुद्धि ........ २४४२ | | साधुन। सत्तावीस. गुतीने मारी .............. २४५४ siderewi तत्त्वमीमांसानो यमरी ............ २४४२ असदायतनत्यागः ........................................ .२४५५ श्रावनमा पूर्वसेवानी ५२018............... २४४२ કામાશ્રવનો ઉચ્છેદ .. .................. २४५५ कान्तायां न अन्यमुद्दोषः ............................. २४४३ | प्रभाष्टिमा विशिष्ट ५६ योगगनी उपलब्धि .... २४५५ माक्षेप शानना प्रभावने पिछी ........... २४४३ | नैश्चयिकविघ्नजयादिप्रकर्षः ............................ २४५६ ज्ञानिकृतक्रियायाः कर्मबन्धाऽजनकता. तात्त्विकयोगफललाभपरामर्शः ......................... २४५७ સાધક ઈન્દ્રિયોને છેતરે. .............. .....२४४४ असंभोड-तत्वसंवेहन शान प्रावी .......... २४५७ भोगप्रवृत्तिस्वरूपविचारणा .......................... २४४५ सर्वविरतौ ध्यानप्रकर्षः ......................... २४५८ भोगप्रवृत्तिः कर्मनाटकात्मिका .......... निर्वियार मात्मतिनी ५२॥16 ............ २४५८ विषय-पायने ५७वीये.......... २४४६ असङ्गानुष्ठानप्रारम्भः .................................२४५९ परमौदासीन्यपरिणतिप्रज्ञापना भावनिन्थिनी डाहियेष्टीने अवलोडीगे ....... २४५९ ઔદાસીન્ય અમૃતરસાંજન. ................ २४४७ ज्ञानदृष्टिजागरण-परिपाकफलविचारः ............. २४६० निश्वयनयने भुज्य ४२वाना में प्रयो४न .......... २४४७ આનંદ કી ઘડી આઈ ..... २४६० निश्चयनयप्राधान्यप्रयोजनप्रकाशनम् ................. २४४८ तत्वप्रतिपत्तिने अगटावी...... .......... २४६० '50-50' छोडीने '80-80' भासावीमे ......... २४४८ स्थिरयभने भाये ............ न भामि ...........................२४६० प्रयो४न ४४५, मे नयनी भुण्यता ५। मान्य... २४४८ અસંગ અનુષ્ઠાનની પરાકાષ્ઠા .........२४६० ............२४४४ | तात्विकयागफललाभपरामश २४४७

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