Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ = संबंध जगत में हम अनेक सजीव निर्जीव पदार्थ देखते हैं, इस सबकी विविध विशेषता जाननेकी इच्छा जिज्ञासु को सदा होती रहती है / ज्ञानी पुरूषों ने जगतके समय पदार्थों का संक्षेप एवं विस्तृत स्वरूप मुमुक्षु आत्माओं के लिए आगमों में वर्णित किया है / उसमें भी सजीव पदार्थो का खूब ही विस्तृत वर्णन है / इन को समजने हेतु सभी सजीव पदार्थों का 24 विभागों में सामान्य संग्रह किया है। इन चोबीश सजीव पदार्थो के बारे में अनेक बातें समझाने वाले संख्यातीत द्वार आगम ग्रंथोमें है / एक द्वार पुरा होता है कि तुरन्त दूसरे द्वार की शुरूआत में पुनः२४ सजीव पदार्थोपर विवेचन इस तरह बार बार 14. सजीव पदार्थोका सूत्र पाठ आता रहे ऐसे बार बार आते और महत्व के सूत्र पाठों को दंडक पद कहते हैं। इस दंडक पदों मे बताये सजीव 24 पदार्थोकी हकीकत समझाने के लिए आगम ग्रंथों मे अनेक द्वार बताए हैं। साधारण बाल जीव उसमें जल्दी प्रवेश नही कर शकते अतः बालजीवों को सरलता से प्रवेश करने इस विषय का संक्षिप्त में स्वरूप बताने इस ग्रंथकीरचना उपकार बुद्धि से की है। जीवविचार - नवतत्व के विषय से इस ग्रंथका विषय एवं विषयका बंधारण (रचना) कुछ अलग प्रकार का है यह समझ में आता है। जीव विचार में सिर्फ जीवका स्वरूप एवं जीवों के भेद प्रभेदकी जानकारी है / नवतत्त्व में पूरे विश्वका तत्त्वज्ञान आता हैं उसमें से सिर्फ जीवतत्त्व के मुख्य भेदों के गुण स्वभाव आदि बताने इस प्रकरण कीरचना है। यानी कि एक ही विषय में जीवविचार से यह प्रकरण आगे बढ़ता है। - 6