Book Title: Chautis Sthan Darshan
Author(s): Aadisagarmuni
Publisher: Ulfatrayji Jain Haryana

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Page 20
________________ १०१ रु, श्रीमती तुलसीबाई धर्मपत्नी श्री कस्तुरचंदजी घनसोरवाले नागपुर १०१ रु. श्रीयुत नेमगोडा देवगोंडा जैन, बेडकीहॉल ता. चिकोडी जि. बेलगांव (आंध्रप्रदेश) १०१ रु. श्रीयुत सिंगई मूलचंदजी अध्यक्ष परवार मंदीर ट्रस्ट, नागपूर १११ रु सेठ कल्लुमलजी पदमचंदजी मालिक फर्म सेठ नंदलालजी प्रेमचंदजी परवार नागपुर, १७१९रु. ।। प्रकाशक का आभार प्रदर्शन ॥ १) मैं ब्रम्हचारी उल्फतराय जैन रोहतक (हरियाणा) निवासी श्री १००८ महावीर भगवान के चरण कमलों को नमस्कार करके उनसे बार-बार प्रार्थना करता हूँ। जिस तरह इस ग्रंथ के प्रकाशन और निर्माण में सहयोग देकर पुण्य उपार्जन करने का मुझे शुभ अवसर प्राप्त हुआ हैं, इसी तरह मेरी अंतिम समाधि भी आत्म रस पूर्वक सम्पन्न हो। मै अग्हवारी नत्यूलालजी जैन बारा सिवनी (मध्यप्रदेश) निवासी का आभार प्रदर्शन करता है जिनके निमित्त और सहयोग से मझें कारंजा जिल्हा अकोला (महाराष्ट्र प्रांत में परम तपस्वी आभीक्षण ज्ञानोपयोगी ज्ञान सूर्य १०८ श्री आदिसागरजी महाराज जैन मुनि (जिन की जन्म भूमि शेडवाल जिला देलगांव मंसूर प्रांत है) के दर्शन और चरण स्पर्श करनेका पुण्य अवसर प्राप्त हुआ। ३) मै उपरोक्त मुनिमहाराज का भी परम कृतज्ञ हूं जिन्होंने इस ग्रंथ का निर्माण करते हए मुझे भी कुछ सहयोग देने का अवसर प्रदान किया और मुझे प्रकाशन करने की स्वीकारता प्रदान की। ४) समाज सेवी ओर भावुक वक्ता और लेखक आदरणीय डाक्टर हेमचन्दजी कारंजा जिल अकोला (महाराष्ट्र) निवासी का भी आभार प्रदर्शन करता हूं जिन्होंने मुझे समय समय पर इस ग्रंथ के प्रकाशन में सहयोग दिया और अंत में इस पथ को प्रस्तावना लिखने की भी कृपा की। | जैन समाज काभी आभार प्रदर्शन करता है। जो समय समय पर मझे प्रोत्साहन देते रहे । तथा आदरणिय श्री महावीर ब्रम्हचर्य आश्रम । कारंजा के प्राण बाल ब्रम्हचारी परमदानी भीयुत पं. माणिकचंदजी दाटियाजी का भी आभार प्रदर्शन करता हूं। जिन्होने इस ग्रंथ की प्रस्तावना लिखने की कृपा की है। ग्रहस्थाश्रम के मेरे सुपुत्र प्रेमचंद (पी, सी.) जैन, एम. ए. विमान ऑफिसर कलकत्ता, श्रीपाल जैन व्यापारी बंबई, डाक्टर शांतिस्वरुप (एस. एस.) जैन बंबई, पिताम्बर कुमार (पी. के.)जैन (टाइम्स ऑफ इंन्डीया की पूना ब्रांच के आफीसर,) सुपुत्री जयमाला देवी जो मेरठ नगर के आदरणीय श्री. इंद्रकुमारजी जैन एम. ए. की अर्धागनि बनी, तथा श्री इंद्रकुमारजी जैन एम, ए. तथा उनके पूज्य माज सेवी पिता सेठ सुकमालचंदजी का भी आभार प्रदर्शन करता है जिन्होने इस ग्रंथ के प्रकाशन मे मुझे असीम प्रोत्साहन दिया है और बहुत भारी परिश्रम किया है। चिरंजीव हरनामसिंह जैन गोहाना ने (जिला रोहतक हरियाना प्रांत) निवासी जो (उपरोक्त मेरे सुपुत्र प्रेमचन्दजी के आदरणीय मामाजी हैं) अपना सब काम छोडकर ६ महीने मेरे साथ रहकर अपूर्व सेवा की और प्रकाशन में, सहयोग दिया। परबार दिगंबर जैन मंदिर ट्रस्ट के प्रधान श्रीयुत सिंघई मूलचन्दजी जैन नागपुर तथा आदरणीय पं. ताराचंदजी शास्त्री, न्यायतीर्थ मुख्याध्यापक दिन महावीर पाठशाला नागपुर और श्रीयुत मानिकचन्दजी मोतीलालजी जैन कासलीवाल नागपुर का भी आभार प्रदर्शन करता हूँ जो मुझे हर समय इस काम में प्रोत्साहन देते रहे और आवश्यकता पड़ने पर भारी प्रकाशन कार्य में परिश्रम भी करते रहे। में उन आदरणीय सज्जनों का भी परम कृतज्ञ हैं जिन्होंने मेरे किसी संकेत के बिना अपनी ज्ञान भक्ति के कारण इस ग्रंथ के प्रकाशन में कुछ द्रव्य भेंट किया जिनके नाम की सूची इस ग्रंथ में अलग छापी गई है। १०) मैं आदरणीय पं. ताराचंदजी शास्त्री न्यायतीर्थ का पुनः आभार प्रदर्शन करता हूं। जिन्होने इस ग्रंथके ७९३ से ८४० पन्नों तक तथा प्रारंभिक पन्नोंका भ्रूफ संशोधन बहुत परिश्रम करके ग्रंथ की छपाई की त्रुटियों को दूर करने की बड़ी कृपा की तथा मेरे बहुत आग्रह करनेपर कम सिद्धान्तपर एक अपूर्व लेख लिखने को भी कृपा दृष्टि की तथा जो पुस्तकें उनके मार्फत बिक्री होंगी वह मुल्य

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