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॥ लेख नं. ४ ॥
जिनवाणी के ४ अनुयोग ( भाग )
सभी अनुयोग प्राणियोंका कल्याण करता है । १) प्रथमानुयोग :- ये प्रकाश डालता है। कौन प्राणी निगोद से निकलकर अरहंत बनकर मोक्ष चला गया इस अनुयोग में आदि पुराण, उत्तरपुराण, पदमपुराण, हरिवंश पुराण आदि अनेक ग्रंथ हैं । २) चरणानुयोगः- ये प्रकाश डालता है। इस मार्गपर चलने से दानवता नष्ट होती चली जाती है । मान
वता पथपर चलकर आत्मा परमात्मा बन जाती है । ५ मिध्यात १२ अवृत १५ योग २५ कषाय सब मिलकर, सत्तावन, आश्रव कहलाते है। वो ही ससार बढाते है और इनके निराकरण करनेके लिये तीन गुप्ति, पांच समिती, दस धर्म, १२ अनुप्रेक्षा २२ परिषहजय ५ चरित्र के सब मिलकर ५७ सम्बर कहलाते हैं । इनसे ही प्राणी मानवता पथपर चलकर कर्म को नष्ट करके भगवान बनजातः है । इसके आधीन सागार, अनागार, श्रावकाचार, मुलाचार आदि अनेक ग्रंथ है ।
३) करणानुयोग:- इस प्रकार से जाना जाता है इनके भाव भूल से आत्मा चार गति, पंचेंद्री, ६ काय में संसार में भ्रमण कर रहा है। उस कर्म सुधाको बतानेवाले षट खंडागम, धवल, महाधवल कर्म कान्ड, जीवबंध गोमटसार आदि कर्म बतानेवाले अनेक ग्रंथ उपलब्ध है ।
४) द्रव्यानुयोग :- विज्ञान है, जिसको आज की भाषामें सायन्स भी कहते है जो ये प्रकाश डालता है, वास्तविक आत्मा का क्या स्वरुप है। उसपर लक्ष्य हो जानेपर सब संसार, वस्तुओं से सहजही राग भाव हटजाने से निज आत्मरस प्रगट हो जाता है ।
सुचना:- कोई भी अनुयोग पढो अगर दृष्टि अपने आत्म शरीरस्वरुप पर लगी रहेंगी तो सर्वही चारों अनुयोग कल्याण कारी हो जायेंगे । अगर दृष्टि आत्मरस से हटकर संसार रस पर लगी रहेगी, तो किसी भी अनुयोग के पढनेसे आत्म कल्याण नही होगा, । ५) निश्चय और व्यवहार धर्मका अनिवार्य सहयोग:१) निश्चय धर्म - अभेद,
एक, विकी अवस्थायें है, इसका छद्मस्थ जीवो के अधिक से अधिक अंतरमुहूर्त ९ समय कम ४८ मिनिट भी है। इतने समय भी अगर उपयोग एकाग्र हो जाय तो केवल ज्ञान केवल दर्शन अनंत सुख अनंत वीर्य आत्मा के निज गुण प्रगट हो जाते है । अनंतानंत काल तक स्थिर रहते है ।
परन्तु
छद्मस्थ जीवोका उपयोग इतने समय एकाग्र नही रहकर चंचल अस्थिर डामाडोल होता रहता है, तब व्यवहार धर्म ही आत्माको अशुभ उपयोग मिथ्या देव गुरु शास्त्र श्रद्धा, हिन्सा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह की निरगल तृष्णा रूप भावनाओ में जाने से रोकता है। सत्य देव गुरु, शास्त्र, श्रद्धा-पंच पांपों का श्रेणी बद्ध थोडा थोडा त्याग या महावृत रुप पुर्ण २८ मूल गुण रुप महावृत ५ इंद्री विजय ५ समिती ५ षटावश्यक ६ नग्न रहना १ भुमिशयन १ स्नान त्याग १ खड़ा रहकर भोजन लेना २४ घन्टे में एक ही बार भोजन लेना, १ दंत मंजन नही करना १, केश लुंच ( हाथ से केश उखाड़ना ) कुल २८ मूल गुण व्यवहार चरित्र ही बताये गये हैं ।
प्रकाशक के बिना किसी संकेत के अपनी ज्ञान दान भावनाओं से इस ग्रंथ प्रकाशन मे द्रव्यदेने वालो की नामावली इस प्रकार है :
५०० रु. सेठ मोतीलालजी गुलाब सावजी, नागपुर.
२०० रु. दख्खन वीन मोटर सर्वीस ट्रान्सपोर्ट कार्पोरेशन प्रोप्राटर मिर्जा ब्रदर्स चिकोडी जिल्हा बेलगाव (अधिप्रांत)
२०१६ सेठ बनवारीलालजी गिरधारीलालजी जैन जेजानी,
नागपुर
१०१ रु. श्रीमती कस्तुरीदेवी धर्म पत्नी श्री मानकचंदजी जैन कासलीवाल नागपुर सुमतोबाई किल्लेदार नागपूर
१०१ रु.
१०१ रु. १०१ रु.
aircarई धर्मपत्नी श्री नेमीचंदजी, पाटनी नागपूर चमेलीदेवी वर्म पत्नी श्री नानकचंदजी, जैन नागपूर
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