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( २६ ॥ ११) ६४ वर्ष की आयु मे महाराष्ट्र प्रांतके नागपुर नगर से २८ मंल पर स्थित रामटेक अतिशय क्षेत्रस्थित
१००८ श्री महावीर दिगंबर जैन गुरु कुलका अधिष्ठाता पनेका कार्य एक वर्ष तक संभाला । १२) ७० वर्ष के आयुमे महाराष्ट्र प्रांत अकोला जिल्हेके कारंजा नगरमे ज्ञानसुर्य आभिक्ष्ण ज्ञानोपयोगी
१०८ श्री आदिसागरजी महाराज इसग्रंयके संग्रहकर्ता जिनकी आज्ञा से इस ग्रंथ निर्माण में सहायता
संग्रह कर्ता के रुपमे सहयोग दिया । १३) ७८ वर्ष के आधुमे उपरोक्त गुरु महाराजजीकी आज्ञा पाकर यह-३४ स्थान दर्शन ग्रंथका प्रकाशन
कर पूज्य त्यागी महाराज, जैन मंदिरो, जनताके कर कमलोमै उपरोक्त ग्रंथ भेट कर रहा । धनउपार्जन का कोई लक्षनहीं हैं । निजपर कल्यानही एक हेतु हैं । कर्म सिद्धांत बहोत गंभीर विषय है । संग्रह कर्ता गुरुदेव दक्षिण में थे, प्रकाशक उत्तर प्रदेशके मेरठ नगर मे थे गुरुदेवकी देखरेख न होने के कारण बहोत भूल रह गई है जिसका शुद्धी पत्रक तयार करके इस ग्रंथ के अंतमे जोड़ दिया गया है । आशा है इस भूल और अज्ञान के लिये जनता-क्षमा प्रदान करेगी। जो भुल अभी रह गयी हो उसको सुधार करके हमको या प्रकाशक को सुचित करनेकी कृपा प्रदान करेगी।
लेखक ब्रम्हचारी उलफतराय दिगंबर जैन इस ३४ स्थान दर्शन ग्रंथके सहायक सग्रह कर्ता व प्रकाशक जन्म भुमि सोनीपत दत्तक भुमि रोहतक (हरीयाना)
॥ लेख माला ।। (क) मानवताकानाशक एक भाव और मानवताके रक्षक तीन भाव इस प्रकार है। (ख) दुर्योधनको पहिला रौद्र रस चढा - सेनाबल - कपिबल - जनबल को शक्ती शाली जानकर पांच पांडवको पुर्णतया नष्ट करके चक्रवर्ती राजा बननेका भाव बना जैसा वर्तमान समय में कुछ व्यक्ति संसारको नष्ट करके नई समाज वादी दुनिया बसानी चाहते है। भरें दर्बारमे जहां धतराष्ट्र भीष्म पिता मय दोनाचार्य आदि तथा सब प्रजा बैठी थी-द्रोपदी का चीर हरण करके पांच पांडवका मनोबल गिराकर उनको नष्ट करके पूर्ण राजपर अधिकार करना चाहता था। यह भावना पहिला रौद्र रसबल था । उसको इस रौद्र रसमे हि पुणं शक्ती दिखाई दे रही थी। परंतु द्रोपदीको इस रससे अनंत गुनाबल भगवत भक्ति में दिखाई दे रहा था जिस समय चीर हरण हो रहा था द्रोपदी की भक्ति भगवानके चरणोमे लगी हुयी थी उस भक्ति रसका यह प्रभाव हुआ कि दुशासन चीर खीचते खीचते गिर पड़ा चीर हरण नहीं हो सका आकाश से देव लोग पुष्पों की वर्षा करने लगे। जब इस अन्याय को देखकर भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव जोश मे आकर आपेसे बाहर होकर दुर्योधन को नष्ट करने के लिये उत्तेजित होते थे उस समय युधीष्टीर महाराजकी दृष्टि तिसरे शांति रस पर लगी हुयी थी जो ये समझ रहे थे शांती रस मे अपूर्व बल होता है। एक पापी अपनेहि
पापसे नष्ट हो जाता हैं । और ऐसाही हुआ अंतमें दुर्योधन आदि सौ भाईयोका पुर्णतया नाश हो गया ड) जब कालांतर में पांच पांडव नग्न दिगंबर मुनी बनके शत्रुजय पर्वतपर ध्याना रुद थे उस समय
दुर्योधनके भानजोनें अपने सौ मामा ओंका बदला लेनेके लिये बाईस लोहेके आभुषणोंको आग पर तपाकर पांचों पांडव के शरीरमे पहना दिये जब शरीर जलने लगा तव पांच पांडवने शरीर का मोह छोड कर चौथे आत्मरसमे तल्लीन हो गये उसी समय ३ पांडव कर्म काटकर मोक्ष चले गये २ पांडव सर्वार्थ सिद्धी चले गये। अगले भवमे वह भी मोक्ष चले जायेगे।
ज इस नीति पर भारत सरकार चल रही है। चारो औरसे सर्व विषयपर अपना झेंडा फैराने के लिये भारत पर तरह तरहके उपद्रव चला रहें हैं । परंतू भारत सरकार युधिष्टर महाराजकी तरह बड़े धैर्य और शांती से अपने देशकी रक्षा तो कर रहे है परंतु उत्तेजित होकर कोसी दुसरे देशपर आक्रमन करनेका भाव स्वप्नमें भी नही सोचते
लेख नंबर २॥ संसार के नव रसः- संसारवर्धक ४ रस है । संसार विरोधक ४ रस है । और मोक्ष प्राप्तिका एक रस है।
कुल इस तरह ९ रस हुये।