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लेखक - डॉ. हेमचंदजी जैन कारंजा जी. अकोला महाराष्ट्र.
इस ३४ स्थान दर्शन ग्रंथ के प्रकाशक ब्रम्हचारी उल्कतराय जैन रोहतक (हरीयाना ) की जीवनी:
१ ) तीन अगस्त सन १८९० को सोनीपत नगर जी. रोहतक (हरीयाना ) मे लालाबुधुमलजी जैन अग्रवाल के घर जन्म हुवा | ६ वर्षकी आयुमै आपने अपने फुफाजी लाला उदमीरामजी जंन रोहतक के घर दत्तकपुत्र बने, बचपनसेही धर्मसंस्कार हृदयमे उत्पन्नहोते रहे है ।
२) रोहतक गव्हर्मेन्ट हायस्कुलमे मैट्रीक तक अंग्रेजी हिन्दी, उर्दु, पारसी संस्कृत आदिका अध्ययन कीया | व्यापारी भाषा मुडी हीन्दी का भी ज्ञान प्राप्त कोया । बम्बई मे व्यापारी क्षेत्र तथा महाराष्ट्र, गुजरातमे धार्मीक संबंध 'कारण गुजराती, महाराष्ट्रीयका भी
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ज्ञान प्राप्त कोया
३)
१६ वर्ष की आयुमे सोनीपत निवासी एक जैन अग्रवाल कन्यासे विवाह हुवा जो ६ मास के बाद मरण को प्राप्त हो गयी ।
४ )
विवाहके कुछ समय बाद दत्तक पिताजीकाभी स्वर्गवास हो गया उनका व्यापार संभालने के लीए विद्या अध्ययन छोडना पडा ।
५) कुछ समय बाद दुसरा विवाह रेवाडी जी. गुडगांवा निवासी लाला प्रभुदयालजी दीगंबर अग्रवाल जैन की कन्या से हुता योगसे वह भी ७ नरा तक वायु रोगसे पीडीत रही । उसके चार भाई हैं १) वाबु करमचंदजी जैन अॅडव्होकेट सुपरीमकोर्ट दील्ली । २) बाबु मेहेरनदजी जैन अॅड : होकेट गुडगांवा हरीयाना)
३) वाबु एस. सी. जैन भारत केन्द्र सरकार के इन्शुअरंस खाते के हेड रहे है । ४ ) बाबु जे सी. जैन दीर्घकाल तक टाइम्स ऑफ इन्डीया के जनरल मेनेजर रहे है।
६) तीसरा विवाह २४ वर्ष की आयुमे गृहाणा जी रोहतक (हरीयाना) के दीगंबर जैन
कन्या विवाह हुवा । जिनके भाई लाला चत्रसेन और लाला हरनामसींग है । इस तीसरी देवी का नाम सुख देविजी हैं । इन्होने ४ पुत्र दो कन्याओं को जन्म दिया. एक कन्या सुपुत्री पदमा देवी स्वर्गवास होगई शेष पांच बहन भाई इस प्रकार हैं । १ पी. सी. जैन एरोड्राम ऑफीसर कलकत्ता २ श्रीपाल जैन व्यापारी बम्बई ३) डॉ. एस एस. जैन एफ आर. सी. एस. लन्डन एडिन वर्ग ४) पि. के. जैन टाइम्स ऑफ इंडिया बंबई को पुनः ब्रांचके ऑफिसर है । ५) श्रीमती जयमाला देवी जिसने बी. ए. डिगरी प्राप्त किया है। बाबु इन्द्रकुमारजी एम. ए. मेरठ की धर्मपत्नि बनी है । ७) प्रकाशक ब्रम्हचारी उलफतराय ३० वर्ष की आयुमे व्यापार के लिये बंबई आगये वहां गेहूं, अलसी, रुई, चांदी सोनेकी दलाली का काम कया। बैंको को हाजर चांदी सोना गोली की भी सप्लाय की,
८) व्यापार के साथ साथ दिगंबर जैन भोलेश्वर मंदीर मे प्रातःकाल, गुलालवाडी मंदीरजी मे रात्रीको तीस वर्षतक निजपर कल्याण के रूपमे आनरंरी तौर पर शास्त्र प्रवचन कीया । जिस समय संघपती सेठ पुनमचंद घासीलालजी ने सिखर समेव तीर्थ यात्रा संघ निकाला साथ मे बारित्र चक्रवर्ती साम्राज्य नायक तो मुर्ती सिद्धांत पारंगत १०८ श्री बाचार्य शांतीसागरजी मुनीमहाराजभी संघ के साथ पधारे थे उस समय ब्रम्हचारी उलफतरायजीने ६ मास तक पैदल यात्रा करके संघ सेवासे पुण्य लाभ लिया था । ९) ५९ वर्ष के आयुमे १०८ आचार्य श्री वीरसागरजी मुनी महाराजसे सवाई माधवपुरमे दुसरी प्रतिमा धारणकर घरका कामकाज छोडदिया घर मेही उदासीन रुपसे रहने लगे । १०) ६३ वर्ष के आयुमे महाराष्ट्र प्रांतके सातारा जिल्हे के लोनद मुकामपर चारित्र्यचक्रवर्ती साम्राज्यनायक १०८ आचार्य श्री शांतीसागरजी महाराजके चरण कमलोंमे ७ वी प्रतिमा धारण करके घर छोड़ दिया । देश विदेश भ्रमण करने लगे ।