Book Title: Chautis Sthan Darshan
Author(s): Aadisagarmuni
Publisher: Ulfatrayji Jain Haryana

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ ( २७ ) १) श्रृंगार रस :- पुण्यभाव से मिले धन, पुत्र, परिवार, वस्त्र सवारी, मकान, बागबगीचे, राज्य वैभव लक्ष्मी प्राप्त करके निज कल्याण मार्ग, भूलजाना इससे संसार भ्रमण चलताही रहता है । R) रौद्र रस:- मानवताको भूलकर दानवतासे सर्व संसारपर छाजानानेकर भाव चोर डाकू अन्यायी राजा बालक बालकाओं स्त्री पुरुष आदिको हरण कर्ताओं पर बनता है। तो ऐसे व्यक्ति योंको नरक त्रिच गति मे भारी दुख भोगना पडता है। इस संसार मे यही रस जोरसे छाया हुआ है । ३) भय रस:- बलवान अन्याय करता हुआ भयभीत रहता है। कमजोर को बलवान सहायक न मिल जावे और बलहीन भय भीत होता है । जन, धन, जीवन, घमं प्रतिष्ठा से कैसे बचे ? (४) विभित्स रस:- जब डाकू छातीपर पिस्तोल रखकर चलता है। ताली मांगता है, घन पूछता है उस समय विचार धारायें नष्ट हो जाती है। तो समझ नही रहती है क्या करू ? ५) सूचना: 1:- उपर के चारों रस उत्तरोत्तर संसार दुख तथा भ्रमण बढाते है नरक निगोद पहुँचाते हैं । करुणा रस: - दुखी रोगो तथा जिस पर बलवान अन्याय कर रहा हो उसकी रक्षा करने का भाव हो जाना । ६) बोर रस:- बलवान की शक्ती से न घबराकर अपना तन मन धन सर्व कमजोर की रक्षा के लिये जोड देना और कम जोर को बचा लेना । ७) अदभुत रस:- कमजोर को जब अपनी घातक अवस्था से अचानक बलवान की सहायता से रक्षा हो जाती है । तो उस समय कमजोर को धर्म और भगवान पर पुर्ण श्रद्धा आ जाती है। तो भगवान की शक्ति अपरंपार है सच्चे रक्षक भगवान हो है । ८) शांति रस:- अचानक धन हानि इष्ट वियोग रोग जल प्रलय भूकंप स्त्रपर शत्रु आक्रमण चोर ढाकू आक्रमण हो उस समय घं मही लोडना शांति से रक्षा का प्रयत्न करना या आत्म ध्यान मे लीन हो जाना यह शांति ग्स कहलाता है। 1 सूचना:- ये चार रस धीरे धीरे पूर्व बंध कर्मों का रम क्षीण करते करते आत्म रस मे झुका लेते है । आत्म रस :- इस मे आत्मा को दृष्ट निज आत्मरस में तीन हो जाती है । सर्व कर्म नष्ट हो जाते है | आत्मा मोक्ष मे जाकर विराजमान हो जाती है । ९) || लेख नं ३ ॥ आत्मा की तीन अवस्थायों (१) बहिरात्मा (२) अंतरात्मा ( ३ ) परमात्मा १) बहिरात्मा:- मिथ्यात्व अविरत प्रमाद कषाय और योग इनपांचो से अकड़ी हुई आत्मा अनंत संसार में भ्रमण कर रही है। यह आत्माएँ बहिरात्मा कहलाती है । वस्तु का स्वरुप उल्टा दिखाई देता है। अपनी इच्छाओ पर नियंत्रण नहीं होता है। सब प्रकार के जीवोकी विराधना होतो रहती है । इच्छाएँ प्रबल होने से पाप बनता रहता है। कषाये मंद होने से पुण्य बंध होता रहता है | परन्तु आत्म स्वरुप ज्ञान नहीं हो पाता । इस अवस्था का नाम बहिरात्मा हैं । २) अंतरात्मा:- मिथ्यात्व अन्याय अभक्ष्य घटने से सम्यकदृष्टि बनकर ११ प्रतिमा रूप देशदूत २८ मूल गुण रूप सकलसंयम द्वारा कर्म बंधसंसार भ्रमण ढीला होते होते १२ वे गुण स्थान के परिणाम हो जाते है । यहां संसार की वस्तुओंका राग पुर्ण नष्ट हो जाता है । ये अवस्थाएँ अंतरात्मा कहलाती है । ३) परमात्माः ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनय, अंतराय का पुर्ण अभाव हो जाने से आत्मा का ज्ञान दर्शन चारित्र वीर्य गुण पुर्ण रूप से प्रगट हो जाता हैं। परन्तु जहां तक आयु अघातिया नाम गोत्र वेदनीय कर्म बाकी है। अरहंत अवस्था मे संसार में ही रहते है । सफल परमात्मा कहलाते हैं। ऊपर कहे ४ अघातिया कर्म भी नष्ट हो जाते हैं तो वे मोक्ष मे चले जाते है । वहाँ उनका नाम निकल परमात्मा होता है । .

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 874