Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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उदीरणा-पद उपसंपद्-हान- पद
संज्ञा - पद
आहार पद
भव पद
आकर्ष-पद
काल-पद
अन्तर पद
समुद्घात पद
क्षेत्र - पद
स्पर्शना-पद
भाव-पद
परिमाण-पद
अल्पबहुत्व-पद
संग्रहणी गाथा
प्रतिषेवणा-पद
आलोचना-पद
सामाचारी पद
प्रायश्चित्त-पद
तप-पद
आठवां उद्देशक
नैरयिक- आदि का पुनर्भव- पद
(XIX)
८४८
८४९
८४९
८५०
८५०
८५०
८५१
८५१
८५१
८५२
८५२
८५२
८५२
८५३
८५३
८५३
८५३
८५४
८५४
८५५
८६३
८६३
८६४
८६४
८६४
८६५
८६५
नवां-बारहवां उद्देशक
( नवां उद्देशक)
(दसवां उद्देशक)
(ग्यारहवां उद्देशक)
(बारहवां उद्देशक)
छब्बीसवां शतक (पृ. ८६६-८७५)
पहला उद्देशक
श्रुतदेवता भगवती को नमस्कार
संग्रहणी गाथा
जीवों और लेश्यादि से विशेषित
- जीवों का बन्धाबन्ध- पद नैरयिक- आदि और लेश्यादि से विशेषित
-नैरयिक- आदि जीवों का बंधाबंध- पद ८६७
८६६
८६६
८६६
८६६
जीव-आदि का ज्ञानावरणीय-आदि-कर्म
की अपेक्षा बंध- अबंध- पद
दूसरा उद्देश
विशेषित - नैरयिक- आदि जीवों का
बन्धाबन्ध-पद
तीसरा- दसवां उद्देशक
तीसरा उद्देश
चौथा उद्देशक
(अनन्तरावगाढ का बन्धाबन्ध)
पांचवां उद्देशक
(परम्परावगाढ का बन्धाबन्ध)
छठा उद्देशक
(अनन्तराहारक का बन्धाबन्ध) सातवां उद्देश
(परम्पराहारक का बन्धाबन्ध) आठवां उद्देशक
(अनन्तर पर्याप्तक- बन्धाबन्ध) नौवां उद्देशक
( परम्पर- पर्याप्तक का बन्धाबन्ध)
दसवां उद्देश
(चरम का बन्धाबन्ध)
ग्यारहवां उद्देशक
( अचरम का बन्धाबन्ध)
८६८
८७०
८७०
८७१
८७१
८७२
८७२
८७२
८७२
८७२
८७२
८७२
८७२
८७३
८७३
८७३
८७३
८७३
८७३
८७४
८७४
सत्ताईसवां शतक (पृ. ८७६ )
पहला- ग्यारहवां उद्देशक
८७६
८७६
जीवों का पाप-कर्म-करण-अकरण-पद अट्ठाईसवां शतक (पृ. ८७७, ८७८ ) पहला उद्देशक
८७७
जीवों का पाप-कर्म-समर्जन समाचरण-पद ८७७
८७८
८७८
पहला उद्देशक
जीवों के पाप-कर्म के प्रारंभ और अन्त
का पद
दूसरा उद्देश
तीसरा - ग्यारहवां उद्देशक
उनतीसवां शतक (पृ. ८७९,८८०)
८७९
८७९
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