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भगवान् महावीर
पुत्र प्रसेनजित को राज्य देकर आत्म-चिन्तन में लग गया । राजा श्रेणिक ने भी कुछ समय पश्चात् अपने श्वसुर का अनुकरण कर राज्य का भार अपनी बड़ी रानी के पुत्र कुणिक ( अजात शत्रु ) के हाथ में दे दिया और वह केवल राजकार्य की देखरेख करता रहा । पर अजातशत्रु को इतनी पराधीनता भी पसन्द न आई और उसने कपट करके अपने पिता को मरवा डाला। कहा जाता है कि अजातशत्रु को यह दुष्ट सलाह बुद्ध के चचेरे भाई देवदत्त ने दी थी। अपने बहनोई की इस हत्या से राजा प्रसेनजित को बड़ा क्रोध आया, और उसने क्रोधित होकर मगध राज को दहेज स्वरूप दी हुई काशी नगरी को उत्पन्न को पुनः जप्त कर लिया। इस घटना से क्रुद्ध होकर अजातशत्रु ने प्रसेनजित के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। पर बहुत चेष्टा करने पर भी वह कृतकार्य न हो सका और अन्त में वह प्रसेनजित के हाथ बन्दी हो गया। प्रसेनजित को उसके दीन मुखमण्डल पर बड़ी दया आई और अन्त में अजातशत्रु के बहुत प्रार्थना करने पर उसने उसे छोड़ दिया। इतना ही नहीं अपनी लड़की का विवाह भी उसके साथ कर दिया, एवं काशी की जागीरी भी उसे वापस करदी । इसके तीन वर्ष पश्चात् जबकि प्रसेनजित कार्यवश कहीं बाहर गया हुआ था, उसके लड़के "विरुदाम" ने पीछे से अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया, और उस विद्रोह में सहायता प्राप्त करने की आशा से वह अजातशत्रु के पास जाने को उद्यत हुआ, पर दैवयोग से रास्ते ही में उसके प्राणान्त हो गये । प्रसेनजित उस काल का एक बड़ा ही न्यायी राजा था। बचपन से ही वह बड़ा बुद्धिमान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com