Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar
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आत्मशिक्षा भावना
सुत मोहिनी वशे रह्यो, पछि लियो संजम भार ॥ १०३ ॥ पंचसया मुनि नेमना, और श्री पासना वार । भोगकारण संयम तजि, मांड्या तिणे घरबार ॥ १०४ ॥ नवाणु कोडी कंचन तजि, और तजि आठे नार । ते दुःकर नित वंदिये, श्री जंबू ऋण एक कन्या कोडी कंचन, तजि जेणे वलि वयरस्वामि ने वंदीये, नित ऊगमते सूर ॥ १०६ ॥ नवाणु पेटी सुरतणी, नित नित होय निर्माल्य ।
काल ॥ १०५॥
दूर |
नरभवं सुरसुख भोगवे, ते शालिभद्र कुमार ॥ १०७ ॥ रत्नकंबलने कारणे, श्रेणिक आव्यो द्वार |
गोख थकी बोली रह्यो, लीयो संजम भार ॥ १०८ ॥ आठ नारी जेणे तजी, ते धन्नो धन धन्न । नारी हास्य संयम लीयो, राख्युं ठाम जिणे मन्न ॥१०६ ॥ षट् नंदन देवकी तणा, भद्दिलपुर सुलसा नार । तास घरे ते उच्छर्या, रूपे देवकुमार ॥ ११०॥ बीस बीस पदमणी, बत्रीस बत्रीस हेम कोड । नेम समोप संयम वरी, ते वंदू कर जोड ॥ १११ ॥ सहस्स पुरुषशुं संयम लियो, श्री नेमीसर हाथ ।
ते थावच्चा वंदिये, मोच्छव कर्यो यदुनाथ ॥ ११२ ॥ बार वरष छठ आंबिल, कीधां शिवकुमार । शीयलव्रत सदा धरी, ए पण दुक्करकार ॥११३॥ कोश्या मंदिर चौमासुं रही, चोरासी चौवीस ।
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