Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 24
________________ मात्मशिक्षाभावना आतम शिक्षा नामथी, सुरनर लागे माय ॥१६॥ वीर-शासन दीपावतो, आणंदविमल सूरींद । प्रमाद पंथ दूरे कर्यो, प्रणमु तेह आणंद ॥१७०॥ तास शिष्य मुनीसर धणी, श्री विजयदानसूरीश । प्रगट महिमा तस जागतो, पाय नमे नर ईश ॥१७१॥ उपशम रसनो कूपलो, तास पट्टधर हीर। सकल सूरि शिरोमणि, सायर सम गंभीर ॥१७२।। हीरविजय गुरु हीरलो, प्रतिबोध्यो अकबर भूप । राय राणा सेवा करे, जेहनु अकल स्वरूप ॥१७३।। म्लेच्छराय जिणे वश कर्यो, जग बर्तावि अमार । विमलाचल मुक्तो कियो, शासन शोभाकार ॥१७४॥ कुमारपाल प्रतिबोधियो, श्री श्रीहेमसूरींद । तिम अकबर गुरु हीरजी, मन धरि अति आणंद ॥१७५।। ध्यान वशे निज पद दियो, निज मन हर्ष अपार । विजयसेनसूरिनामथी, नित होय जय जयकार ॥१७६।। कामकुम्भ चिंतामणी, कल्पतरु अवतार । ते सविनी जेह सिद्धिथी,अधिक ए भवि विचार ॥१७॥ विजयसेन गुरुराय वर, विजयदेवसूरींद । विजयमान गुरु वंदिये, जिम सूरज अरु चंद ।।१७।। तपगच्छ वाचक में वरु, विमलहर्ष शिरताज । नामें नवनिधि संपजे, दरिसण सीझे काज ॥१७६।। आतम-शिक्षा-भावना, तास शिष्य मनरंग । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org


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