Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 82
________________ समाधि विचार संजम गुण परभाव थी, भावी भाव संजोग । ____ महाविदेह क्षेत्रां विषे, जन्म होबे शुभ जोग ॥ १५३ ॥ जिहां सीमंधर स्वामीजी, आदे वीश जिणंद । त्रिभुवन नायक सोहता, निरखं तस मुखचंद ॥ १५४ ॥ केवलज्ञान दिवाकर, बहु केवली भगवान । ___ वली मुनिवर महा संजमी, शुद्ध चरण गुणवान ॥ १५५ ॥ एहवा उत्तम क्षेत्रमा, जो होय माहरो वास । तो प्रभु चरण कमल विषे, निशदिन करु निवास ॥१५६।। अत्ति भक्ति बहुमान थी, पूजी पद अरविंद । श्रवण करुं जिनवर गिरा, सावधान गत द्वद ॥ १५७ ।। समवसरण सुरवर रचे, रतन सिंहासन सार । बेठा प्रभु तस ऊपरे, चोत्रीश अतिशय धार ॥ १५८ ॥ वाणी गुण पांत्रीश करी, वरसै अमृत धार । ते निसुणी हृदये धरी, पामु भवजल पार ॥ १५६ ।। निविड़ कर्म महारोग जे, तिणकुँ फेडणहार । परम रसायन जिन गिरा, पान करु अति प्यार ।।१६०॥ क्षायक सकित शुद्धता, करवानो प्रारंभ । प्रभु चरण सुपसाय थी, सफल होवे सारंभ ॥ १६१ ।। एम अनेक प्रकार के, प्रशस्त भाव सुविचार । करके चित्त प्रसन्नता, आणंद लहुँ अपार ॥ १६२ ।। और अनेक प्रकार के, प्रश्न करु प्रभु पाय । उत्तर निसुणी तेहना, संशय सवि दुर जाय ॥ १६३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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