Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 112
________________ ( १०५ ) विहार प्रांत के क्षत्रियकुण्डग्राम के सिद्धार्थ राय की भार्या त्रिशला रानी की कोख से चैतसुदी १३ की शेष रात्रि को आज से करीब २५७२ वर्ष पहले जन्मे थे। उनके उपदेश का सार यह है कि : अपने अनादि मिथ्यादृष्टिपन-समझ की भूल को पहले सुधारो, समझ की भूल सुधरने पर शरीरादि का आकर्षण कमता हुआ आत्म कल्याण की दिशा में अपनी दृष्टि जायेगी तब अपना लक्ष नाशवान शरीर के सुखाभास से हटता हुआ आत्मा के स्थाई स्वाधीन एवं सत्यानंद की और क्रमशः स्थिर हो जायेगा, यह तभी सम्भव होगा जब अपने 'हिंसादि क्रियात्मक आचार एवं मोह-राग द्वेष भावात्मक विचार रूप अनादि रोग की दवा अहिंसादि क्रियात्मक तथा क्षमादि भावात्मक औषधि सेवन भले प्रकार से करेंगे तब अनादि रोग से मुक्त हो सकेंगे। सारांश जीव अपने समझ को भूल को जिन वाणी रूप सम्यग् दर्शन से सुधारे तथा अपना लक्ष शरीर के सुखाभास को छोड़कर आत्म कल्याण की दिशा में बदले, तब सम्यग् दर्शन-आत्म प्रतीति रूप से होगी तब सहजात्म ज्ञान होगा, एवं चारित्र-समता भाव रूप में परिवर्तित होकर क्रमशः आत्मसिद्धि हो जायेगी। हिंसा, क्रोधादि अनादि रोग की दवा अहिंसा, क्षमादि हैं, और दवा की आवश्यकता रोगी को ही रहती है, रोग से निरोग होने तक सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र रूप पथ्य को आवश्यकता है ही। अहिंसादि शब्द नकारात्मक है वह हिंसादि नहीं करने का कहता है, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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