Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 103
________________ भगवान महावीर का आत्मज्ञान धर्म की व्यवहारिक व्याख्या___ व्यवहारिक धर्म-जैसे दया, दान, शील, जप तप व्रतादि की आराधना से मनुष्य की सद्गति होती है। आराधना में उसके मनोभाव मन्द या तीव्र की अपेक्षा से मनुष्य या दैवगति उसे प्राप्त होती है। अर्थात् नरक या तिथंच रूप - दुर्गति में जाने से बच जाता है। यह तो शारीरिक एवं जीवन परिस्थिति को प्रतिकूलता से बचकर उसकी अनुकूलता प्राप्त करने की बात हुई। धर्म की यह व्याख्या तो प्रायः सभी धर्म करते हैं। .. तो फिर वीतराग सर्वज्ञदेव के धर्म की विशेषता क्या हुई ? भगवान महावीर का उपदेश है कि शुभ कार्य, विचार एवं भावना अनुरूप जीवन जीने से सद्गति तो प्राप्त होती है, किन्तु इतने से ही जीव का जन्म मरण रूप भवभ्रमण नहीं रुकता। क्योंकि अनादिकाल से जीवों की चेतना में अज्ञानतावश जो शल्य-कांटे चुभे हुए हैं ( तीन काटे जैसे, मायाशल्य, नियाणा शल्य, मिथ्यादर्शन शल्य ) उन्हें चेतना से बाहर निकालने के लक्ष्य से धर्म आरावन करके उन्हें अपने अन्तर से निकाले बिना जोव में मोक्ष के योग्य पात्रता नहीं आ सकती, पात्रता तो मायाशल्य दम्भ रहित धर्म आराधना करने से आती है। नियाणा शल्यफल को इच्छारहित-निष्काम आराधना करने से तथा मिथ्यादर्शन-शल्य आत्मा की सच्ची समझपूर्वक आराधना करने से विशेष रूप से पात्रता आती है, अर्थत् जीव को व्यवहार से सम्यग् दर्शन होता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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