Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 63
________________ श्री वैकुंठ पंथ प्राणी ने परियाणु आवियु, न गणे वार कुवार । भद्रा भरणी योगिनी, जो होय सामो काल ॥ मार्ग० ४ ॥ जम रूपे बिहामणो, वाटे दीये रे मार। कृत कमाइ पूछशे, जीवनो किरतार ॥ मार्ग० ५ ॥ लोभे वाह्यो जीवडो, करतो बहु पाप। ___अंतरजामी आगले, केम करीश जबाब ॥ मार्ग० ६ ॥ जे विण घडो सरतो नहीं, जोवन प्राग आधार । ते विण वरस वही गयां, शुद्ध नहीं समाचार ॥ मार्ग०७॥ आव्यो तुं जीव एकलो, जातां नहीं कोई साथ।। पुण्य बिना तुं प्राणिया, घसतो जाईश हाथ ॥ मार्ग० ८ ॥ मग कोरी माहे पेशीये, तोहि न मेले मोत । । चेतणहारा चेतजो, जाशे गोफण गोला सोत॥ मार्ग० ६ ॥ छत्रपति भूप केइ गया, सिद्ध साधक लाख । क्रोड़ गमे करम आवट्या, अमर कोइ जीव दाख मार्ग० १०॥ आपण देखतां जग गयो, आपने पण जाणा । ऋद्धि मेली रहेशे नहीं, मोहोटा राय ने राणा ॥मार्ग० ११॥ दहाडे पहोते आपणे, सहु कोई जाशे । धर्म विना तुमे प्राणिया, पडशो नरकावासे ।। मार्ग० १२ ।। संबल होय तो खाइये, नहीं तो मरिये भूख । आपणनो तिहां कोइ नहीं, जेहने कहिये दुःख ॥मार्ग० १३ ।। आगल हाट न वाणीया, न करे कोइ उधार । गांठे होय तो खाइये, नहीं कोइ देअणहार ॥ मार्ग० १४ ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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