Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 64
________________ ५७ श्री वैकुंठ पंथ निश्चल रहेQ छे नहीं, म करो मोड़ा मोड़ । परस्त्री प्रीत न मांडिये, एतो महोटी खोड़ ॥ मार्ग० १५॥ वस्तु परायी मत लीयो, म करो तांत पराई। धर्म विना जग जीवने, होशे अंते खुआरी॥ मार्ग० १६ ॥ कूड कपट तुमे मत करो, जीव राखजो ठाम । __ जीवदया प्रतिपालजो, जो होये वैकुंठ काम ॥ मार्ग० १७ ॥ मोहोटा मंदिर मालीयां, घर पण घणेरी आथ । हीरा माणेक अतिघणा, पण कांइ नावे साथ ॥ मार्ग० १८ ॥ कोडी गमे कुकर्म कियां, केता कहुँ तुम आगल । लेखे किणिपरे पोहोचीये, प्रभुजोशुं कागल ॥ मार्ग० १६ ॥ आगल वेतरणी वहे, तिहां कोइ न तारे । धर्मी तरी पार पामशे, पापो जाशे पायाले ॥ मार्ग० २० ॥ दीठे मार्ग चालिये, न भराये कूडो साख । .. काल काया पडी जायशे, मसाणे उड़शे राख ॥ मार्ग० २१॥ जतन करतां जायशे, ‘उड़ी जाशे सास । माटी ते माटो थायशे, उपर उगशे घास ॥ मार्ग० २२ ॥ माय बाप ए केहनां, केहनो परिवार । पुत्र पौत्रादिक केहनां, केहनी घरनार ॥ मार्ग० २३ ॥ कोइ म करशो गारवो, धन जोबन केरो । अंत उगर्यो कोइ नहीं, आपणथी भलेरो ॥ मार्ग० २४ ॥ महारु महारु करतो थको, पड्यो माया ने मोह। लोचन बे मीचाणडां, (तव) धणी अणेराइ होय ॥मार्ग० २५।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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