Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 62
________________ सर्व पापादिक आलोयणा स्तवन मुझ आधार छै एतलोजी, सद्दहणा छे शुद्ध । जिनधर्म मीठो जगत में जी, जिम साकर ने दूध ॥ कृ०२८ ॥ रिषभदेव तू राजीयोजी, सेत्रु जगिरि सिणगार । पाप आलोय आपणाजी, कर प्रभु मोरी सार ॥ कृ० २६ ॥ मर्म एह जिन धर्मनोजी, पाप आलोयां जाय । मनसुं मिच्छामि दुक्कडंजी, देता दुरित पलाय ॥ कृ० ३० ॥ तू गति तू मति तू धणीजी, तू' साहिब तू देव | आण धरु शिर ताहरीजी, भव २ ताहरी सेव ॥ कृ० ३१ ॥ कलश - इम चढीय सेत्रुज चरण भेट्या, नाभिनंदन जिन तणा । कर जोड़ी आदि जिणंद आगे, पाप आलोया आपणा || श्रीपूज्य जिनचंदसूरि सद्गुरु, प्रथम शिष्यं सुजश घणे । गणि सकलचंद सुशिष्य, वाचक, समय सुन्दर गणि भणे ॥ ३२ ॥ ॥ इति आलोयणा गर्भित शत्रुंजय स्तवनम् ॥ ॥ अथ श्री वैकुंठ पंथ ॥ वैकुंठ पंथ बीहामणो, दोहिलो छे घाट | आपणनो तिहां कोइ नहीं, जे मार्ग वहे रे उतावलो, उडे झीणेरी देखाड़े वाट ॥ १ ॥ खेह | कोइ कोइ पडखे नहीं, छांडी जाय सनेह ॥ मार्ग० २ ॥ एक चाल्या बीजा चालशे, त्रीजा चालणहार । रात दिवस वहे वाटडी, पडखे नहीं लगार ॥ मार्ग० ३ ॥ Jain Educationa International ५५ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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