Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

View full book text
Previous | Next

Page 68
________________ समाधि विचार ॥ समाधि-विचार ॥ * दोहा * परमानन्द परमप्रभु, प्रणमु पास जिणन्द । ___ वंदु वीर आदे सहु, चउबीसे जिगचंद ॥ १ ॥ इंद्रभूति आदे नमु, गणधर मुनि परिवार । जिन वाणी हैडे घरी, गुणवन्त गुरु नमुसार ॥ २ ॥ आ संसार असारमां, भमता काल अनन्त । असमाधै करी आतमा, किम ही न पाम्यो अंत ॥ ३ ॥ चउगतिमां भमतां थकां, दुःख अनन्तानन्त । भोगवीयां एणे जीवडे, ते जाणे भगवंत ॥ ४ ॥ कोई अपूरव पुन्यथी, पाम्यो नर अवतार । उत्तम कुल उत्पन्न थयो, सामग्री लही सार ॥ ५ ॥ जिनवाणी श्रवणे सुणी, प्रणमी ते शुभ भाव । तिणथी अशुभ टल्या घणां, कांइक लही प्रस्ताव ॥ ६ ॥ विरवा भव दुःख भाखीयां, सुखतो सहज समाध । तेह उपाधि मिटे हुए, विषय कषाय अगाध ॥ ७ ॥ विषय कषाय टल्या थकी, होय समाधि सार । तेण कारण विवरी कडं, मरण समाधि विचार ॥ ८ ॥ मरण समाधि वरणवु, ते निसुणो भवि सार । अंत समाधि आदरे, तस लक्षण चित्त धार ॥ ६ ॥ भागवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114