Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 65
________________ ५८ श्री वैकुंठ पंथ जे जिहां ते तिहां रह्य, चाल्यो एकलो आप । साथे संगते बे थयां, एक पुन्य ने पाप ॥ मार्ग० २६ ॥ सुगुरु सुसाधु वंदिये, मंत्र महोटो नवकार । देव अरिहंतने पूजीये, जेम तरीये संसार ॥ मार्ग० २७ ॥ शालिभद्र सुख भोगव्यां, पात्र तणे अधिकार । खीर खांड घृत वहोरावीयां, पोहोता मुक्ति मझार |मार्ग० २८।। तस घर घोड़ा हाथीया, राजा दीये बहुमान । - दान दया करी दीजिये, भावे साधु ने मान ॥ मार्ग० २६ ।। धर्मे पुत्रज रुअड़ा, धर्मे रूडी नार। धर्मे लक्ष्मी पामीयो, धर्म जय जयकार ॥ मार्ग० ३० ॥ नव नंद मत्ता मेली गया, डुंगर केरा पाणा। समुद्रमां थया शंखला, राजा नंदनां नाणां ॥ मार्ग० ३१ ॥ पुंजी मेली मरि जायशे, खावे खरचवे खोटा। ते कडाह ऊपर थाइ, अवतर्या मणिधर महोटा ॥ मार्ग० ३२ ॥ माल मेली करी एकठा, खरचे नवि खाय। . लेइ भंडारे भूमिमां, तिहां कोइ काढी जाय ॥ मार्ग० ३३ ॥ मूंजी लक्ष्मी मेलशे, केहने पाणी न पाय। . धर्म कार्य आवे नहीं, ते धूल धाणी थाय ॥ मार्ग० ३४ ॥ जीवतां दान जे आपशे, पोते जमणे हाथ । श्री भगवान एम भाखियु, सहु आवशे साथ ॥ मार्ग० ३५ ॥ दया करी जे आपशे, उलटे अन्ननु दान । अडसठ तीर्थ इहां अछे, वली गंगास्नान ।। मार्ग० ३६ ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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