Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar
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श्रावक के तीन मनोरथ
प्रकार से तपस्या करने वाला, अन्त आहारी, प्रान्त आहारी, अरस विरस आहारी, लक्खा तुच्छ आहारी, अन्तजोवी, प्रांतजीवी, अरसजीवी, विरसजीवी, लुक्ख जीवी, तुच्छजीवी, सर्वरस त्यागी, छ काय प्रतिपालक, निर्लोभी, निस्वादी, पक्षी एवं हवा के समान अप्रतिबद्ध विहारी, वीतराग परमात्मा का आज्ञानुयायी, जिस दिन होऊँगा वह दिन मेरे लिये धन्य है ॥
तीसरा मनोरथ मैं तमाम पापस्थानकों की आलोयग लेकर निःशल्य हो, सर्वजीव राशि को खमा के, सब व्रत सम्भालते हुए, अठारह पापस्थानकों को त्रिविध त्रिविध वोसिराता हुआ, पंडित मरण प्राप्त करू___ चारों आहारों का पच्चक्खाण कर शरीर को आखरी श्वासोश्वास में वोमिराकर तीनों आराधना आराधन करता हुआ, मंगलकारी चार शरण उच्चारण करता हुआ संसार को पीठ देता हुआ मैं पण्डित मरण प्राप्त करू। __ अरिहंत देव, दूसरे सिद्ध भगवान, तोसरे साधु महाराज, और चौथा केवली प्ररूपित धर्म को आराधन करते हुए शरीर पर से मोह उतारकर, पादपोपगमन संथारा सहित पांच अतिचार टालते हुए एवं मृत्यु समय जीने मरने की इच्छा रहित मुझे पंडित मरण प्राप्त हो ।
* तीनों मनोरथ सम्पूर्ण *
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