Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 50
________________ पदमावती आराधना खाटकी ने भवे में कीया, जीव नानाविध घात ॥ चौडीमार भवे चरकलां, माऱ्या दिनरात ॥ ते० ॥ ११ ॥ काजी मुल्लाने भवे, पढी मंत्र कठोर ॥ जीव अनेक झम्भे कीया, कीधा पापं अघोर ॥ते०॥ १२ ॥ माछी ने भवे माछलां, जाल्यां जलवास ॥ धीवर भील कोली भवे, मृग पाडया पास ॥ ते० ॥ १३ ।। कोटवाल ने भवे में किया, आकरा करदंड ॥ बंदीवान मराविया, कोरड़ा छडी दंड ॥ ३० ॥ १४ ॥ परमाधामीने भवे, दीघां नारकी दुःख ॥ छेदन भेदन वेदना, ताडन अति तिख। ते० ॥ १५ ॥ कुंभारने भवे में किया, नीभाह पचाव्या ॥ तेली भवे तिल पीलिया, पापे पिंड भराव्या ॥ते० ॥ १६ ॥ हाली भवे हल खेडोयां, फाड्यां पृथ्वीनां पेट । सूड निदान घणां कीया, दीघां बलद चपेट ।ते०॥ १७ ॥ माली ने भवे रोपियां, नानाविध वृक्ष ॥ मूल पत्र फल फूलना, लागां पाप ते लक्ष ॥ ते० ॥ १८ ॥ अधोवाईयाने भवे, भर्या अधिका भार ॥ पोठी पूठे कीडा पड्या, दया नाणी लगार ॥ ते० ॥ १६ ॥ छीपा ने भवे छेतर्या, कीधा रंगण पास ॥ अग्नि आरंभ कीधाघणां, धातुवाद अभ्यास ॥ ते० ॥ २० ॥ शूरपणे रण जुझतां, मार्या माणस वृन्द ॥ मदिरा मांस माखण भख्या, खाधां मूलने कंद ॥ते०॥२१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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