Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar
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श्री आलोयण छतीसी
५१ तड़तड़ते नांख्या तावडे, सुल्या धान जिवार ।
तड़फडिने जीव ते मूआ, दया न रही लगार पा०२२।। अणगल पाणी लूगडा, धोया नदी तलाव ।
___ जीव संहार कीयउ घणउ, साबू फरस प्रभाव ॥ पा० २३॥ वयरी विष दे मारिया, गलफाँसी दोध ।
ते तुझनै पिण मारिस्य, मूकिस्य वयर लीध पा०२४॥ कोउ अंगिठा तें करि, थाप्यो सिगडी कुंड।
रातइ दीवउ राखियउ, पापई भर्यो पिंड । पा ०२५॥ मायथी विछोह्या वाछड़ा, नीरी नहीं चारी।
उन्हाले तिरसै मूआ, कीधी नहीं ज सारो ॥पा० २६॥ मा बापने मान्या नहीं, सेठसु असंतोष।
__ धर्मनो उपगार नहीं धर्यो, पावे किम सुखपोष ।।पा०२६॥ आंधउ टूटउ पांगुलौ, कोढीयो जार चोर ।
मरि जा फीटिनि बोल तू, कह्या वचन कठोर ॥पा०२८।। मद्यनइं मांस अभक्ष जिके, खाधा हुस्ये हूँस ।
मिच्छामि दुक्कड देइने, पछै लेजे सुस ॥ पा०. २६ ॥ सामाइक पोसा कीया, लोधा साधुना वेस।
____ पण संवेग धर्यो नहीं, कहि किम तु तरेस पा० ३० ॥ सूत्र ने प्रकरण समझता, कह्यो विपरीत कोइ ।
जण जण मत ते जूजूइ, सुगतां भ्रम होइ ॥ पा० ३१ ॥ वचन जिके वीतरागना, ते तउ सहि साच । भगवती सूत्र जोजो सहु, वीरजीरा वाच ॥ पा० ३२ ॥
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