Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 59
________________ ५२ श्री आलोयण छतीसी कर्मादान पनरह कह्या, वलि पाप अढार । खिण खिण ते सहु खामिज्यो, संभारि संभार ॥पा०३३ ।। इणभवि पर भवि एहवा, कीधा हुवइ पाप । नाम संभारीने खामिज्यो, करज्यो पछताप ॥ पा०३४ ॥ खरच कोई लागस्ये नहीं, देहनै नहीं दुख। पण मन वयराग आणिज्यो, सही पामिस सुख ॥पा०३५।। संवत सोल अठाणुये, अहमदपुर मांहि । 'समयसुन्दर' कहै मई करी, आलोयण उछाहि ॥ पा० ३६ ।। इति श्री आलोयणा छतीसो सम्पूर्ण । अथ सर्व पापादिक आलोयणा स्तवन बेकर जोड़ी वीनकुंजी, सुणि स्वामी सुविदीत । ___ कूड़ कपट मूकी करीजी, बात कहूँ आप बीत ॥ १ ।। कृपानाथ मुझ वीनती अवधार ॥टेक ।। तु समरथ त्रिभुवन धणीजी, मुझने दुत्तर तार ॥ कृ० २ ॥ भवसायर भमतां थकां जी, दीठा दुःख अनन्त । भाग संयोगे भेटियाजी, भयभंजण भगवंत ॥ कृ० ३ ॥ जे दुःख भांजे आपणोजी, तेहने कहीये दुःख । पर दुख भंजण तु सुण्योजी, सेवक ने द्यो सुख ॥ कृ० ४ ।। आलोयण लीधां पखेजी, जीव रुलै संसार । रुपी लक्ष्मणा महासतीजी, एह सुणो अधिकार ॥ कृ० ५ ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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