Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar
View full book text
________________
श्री आलोयण छतीसी
॥ अथ श्री आलोयणा छतीसी ॥ ते मुझे मिछामि दुकडं - यह —-राग पाप आलोय तु आपणा, सुद्ध आगम साखे ।
आलोयां पाप छूटिये, इम भगवंत भाखे ॥ पा० ॥१॥ साल हीयाथी काढीजइ, जिम कोधा तेम । दुःख देखिस नहींतर घणा, रूपी लखमण जेम ॥ प० ॥२॥ वृद्ध गीतार्थ गुरु मिले, आतमा सुद्ध कीध ।
तौ आलोयण लीजोये नहींतर स्युं लीध ॥ पा० ३ ॥ ओछउ अधिकौ द्य जिके, परकाशइ पाप ।
लेणहार छूटे नहीं, साम्हउ लागे संताप || पा० ४ ॥ कीधा तिम को कहा नहीं, जीभ लड़थड़इ झूठ । कांटो भांगड आंगुली, खोत्रीजे अंगुठ ॥ पा० ५ ॥ गडर प्रवाह तूं मुंकिजे, दुसमकाल दुरंत । आतम साख आलोयजे, छेद ग्रन्थ कहन्त ॥ पा० ६ ॥ कर्म निकाचित जे किया, ते तो भोगवियां छूट ।
सिथिल बन्ध बंध्या जिके, विन भोगव्यां त्रुट ||पा०७॥ पृथ्वी पाणी अग्निना, वायु वनस्पति जीव ।
तेहनो आरंभ तुं करइ, स्वाद लीध सदीव || पा०८ ॥ आंवउ बोलउ बोबडो, मृगापुत्र ज्यु देख |
अंग उपंगइ तेहन, मारे लोहनी मेख || पा० ६ ॥ बोलइ नहीं ते बापडउ, पिण पीडा होय ।
तेहवी तीर्थंकर कहइ, आचारांगइ जोय ॥ पा० १० ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
୪୧
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114